पृष्ठ:दासबोध.pdf/३९

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२८ दासबोध । 1 उन्होंने तत्कालीन पंडितों से अनेक जयपत्र प्राप्त किये थे। उन्होंने मराठी भाषा में तो अनेक उत्तम उत्तम ग्रन्थ लिखे ही हैं; पर कई ग्रन्ध उन्होंने संस्कृत में भी लिखे हैं। उनमें से “ निगमसार " बहुत प्रसिद्ध है । पहले वे मराठी की निन्दा करते थे और साधु जनों के सम्बन्ध में विशेष पूज्यभाव न रखते थे। जवसे उनकी रामदासस्वामी के साथ भेंट हुई तबसे उनका सारा गर्व चला गया। रामदासस्वामी ने उनकी सब शंकाएं दूर की, और अपने अनोखे चमत्कारों से उन्हें चमत्कृत करके साधुओं के विषय में, उनके मन में श्रद्धा उत्पन्न की। उन्होंने वामन पंडित को अपनः शिप्य बनाया और प्राकृत-भाया में ग्रन्थ रचने का उपदेश दिया । उस समय से वामन पंडित ने मराठी में पचास साठ ग्रन्थ लिखे उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता पर जो टीकात्मक ओवीबद्ध ग्रन्थ लिखा है। वह अद्वितीय है । कहते हैं कि इनके सारे ग्रन्थों के पद्य वारह लाख के करीब हैं। इस प्रकार रामदासस्वामी ने अपने समय के पंडितों के मन में मराठी के विषय में प्रेम उत्पन्न किया । समर्थ के शिष्यगण और साम्प्रदायिक मठ ! यह बात निश्चित रूप से नहीं वतलाई जा सकती कि श्रीसमर्थ रामदासस्वामी के शिष्य कितने, कहाँ और कौन कौन थे; उन्होंने कितने और कौन कौन स्थानों में अपने सम्प्रदाय के मठ स्थापित किये और किन किन लोगों को मठाधिपति या 'महंत' बनाया। वर्तमान समय में जो विद्वान् लोग महाराष्ट्र के ऐतिहासिक और प्राचीन काव्यसाहित्य की खोज में लगे हैं उनका यह कथन है कि श्रीरामदासस्वामी ने हजारों शिष्य और सैकड़ों महन्त बनाये थे और अनेक स्थानों में अपने मठ स्थापित किये थे। उनके शिष्य और महंत- गण सारे हिंदुस्थान में, विशेष करके महाराष्ट्र में, भ्रमण करके खधर्म और सुनीति का उपदेश करके लोगों में जाग्रति उत्पन्न करते थे। इन सब लोगों की ठीक ठीक गिनती करना अव कठिन है। स्वयं समर्थ ने दा० बो०, दशक १९, समास १० में लिखा है, "कितने लोग हैं सो मालूम नहीं; यह नहीं मालूम कि कितना समुदाय है; सव लोगों को श्रवण और मनन में लगानेवाले इस समुदाय की गणना नहीं हो सकती।" उनके प्रसिद्ध महन्त कल्याणस्वामी एक स्थान में लिखते हैं, "इस भूमंडल में समर्थ की भक्तमंडली की गणना कोई नहीं कर सका। गिरिधरस्वामी तो यह लिखते हैं कि “ समर्थ ने कितने ही महन्त और शिष्य गुप्तरीति से रबखे थे; उन्हें समर्थ के सिवा और कोई नहीं जानता।" तात्पर्य यह है कि श्रीसमर्थ ने अपने जीवनकाल में जो अनेक शिष्य और महंत बनाये थे और अनेक स्थानों में मठ- स्थापना की थी उन सबका इस समय पता लगाना, केवल कठिन ही नहीं किन्तु असम्भव सा जान पड़ता है। यद्यपि समर्थ के सब शिष्यगणों की गणना करना असम्भव है तथापि उनके चरित का जिन जिन महानुभावों ने वर्णन किया है उन्होंने कुछ महन्तो. शिष्यों और मठों के नाम भी दिये हैं । धुलिया ( खानदेश ) की सत्कार्योत्तेजक सभा ने श्रीरामदासस्वामी की कविता