पृष्ठ:दासबोध.pdf/३९६

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वारहवाँ दशक । पहला समास-विमल लक्षण । ।। श्रीराम ॥ पहले 'प्रपंच' (गार्हस्थ्य धर्म ) का अच्छी तरह आचरण करना चाहिए; फिर परमार्थ का विचार ग्रहण करना चाहिए । हे विवेकी पुरुयो ! इसमें आलस न करना चाहिए ॥ १॥ यदि 'प्रपंच' छोड़ कर परमार्थ करोगे तो इससे तुम दुखी होगे। तुम विवेकी तभी कहाओगे जव प्रपंच और परमार्थ दोनों की रक्षा करोगे ॥२॥ यदि 'प्रपंच' छोड़ कर कोई ‘परमार्थ' करेगा तो उसे पहले अन्न ही खाने को न मिलेगा; फिर उस अभागी के लिए परमार्थ का तो नाम ही न लो ! ॥३॥ तथा, यदि कोई 'परमार्थ ' छोड़ कर 'प्रपंच' करेगा तो भी वह यमयातना भोगेगा और उससे अंत में परम कप्टी होगा ॥४॥ यह बात तो लोग देखते ही हैं कि, जब कोई 'साहव' के काम पर न जाकर घर ही में सुख से वैठा रहता है तब 'साहब' उसको कूटता है और लोग तमाशा देखते हैं। ॥ ५॥ ऐसी दशा में उसका महत्व ही चला जाता है-वह दुर्जनों के हास्य का पात्र बनता है और स्वयं बहुत दुख भोगता है ॥ ६ ॥ यही हाल अंत में होनेवाला है-इस लिए भगवान् का भजन करना चाहिए और परमार्थ का प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहिए ॥७॥ जो संसार में रहते हुए ही, उससे मुक्त (अलिप्त) रहता है उसीको सच्चा भक्का जानना चाहिए । वह अखंड रीति से युक्तायुक्त का विचार किया करता है ॥८॥ प्रपंच' में जो सावधान है, समझ लो कि, वह परमार्थ भी करेगा और जो प्रपंच ही में ठीक नहीं है वह परमार्थ क्या करेगा ? ॥ ६ ॥ इस लिए सावधानी के साथ 'प्रपंच और परमार्थ ' चलाना चाहिए । ऐसा न करने से नाना दुख भोगने पड़ते हैं ॥ १०॥ वनस्पतियों पर के कीड़े (लम्बे और हरे, छोटे छोटे कीड़े) भी श्रागे देख कर अपना शरीर उठाते हैं (चलते हैं) अर्थात् जीवजन्तु भी, इस प्रकार, विवेक से चलते हैं परन्तु जो पुरुप होकर भी भ्रम में पड़े हुए हैं उन्हें क्या कहा जाय ! ॥ ११ ॥ अतएव, दूरदर्शिता का स्वीकार करना चाहिएअखंड रीति से विचार करते रहना चाहिए और आगे होनेवाली बातें-भविष्य घटनाएं--पहले ही से जान लेना चाहिए