पृष्ठ:दासबोध.pdf/४०४

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समास ६] उत्पत्ति का क्रम। . जो है सब उसीका है 'हम' कुछ नहीं है; वही कर्ता है, चंचल आत्मनिवेदन है ॥ १७ ॥ १८ ॥ अब निश्चल आत्मनिवेदन यह है कि, चंचल माया तो स्वप्न की तरह नश्वर है और परमात्मा निश्चल तथा निराकार है। इसके सिवाय जव चंचल माया वास्तव में कुछ है ही नहीं तब 'हम' की कल्पना ही मिथ्या है* ॥ १६ ॥ २० ॥ उपर्युक्त तीनों प्रकार से विचार करने पर हम" कुछ नहीं है-दूजापन है ही नहीं- और जब 'हम ही नहीं है तब “ मैंपन" कहां हो सकता है ? ॥ २१.१. सोचते सोचते सब अनुमान में आ जाता है, मालूम होते होते सब मालूम हो जाता है; और पूर्ण अनुभव आ जाने पर बोलना शान्त हो जाता है ॥ २२॥ $6 छठवाँ समास-उत्पत्ति का क्रम । ॥ श्रीराम ।। परब्रह्म निर्मल, निश्चल, शाश्वत, सार, अमल, विमल तथा आकाश की तरह सर्वव्यापक है ॥१॥ उसमें करना-धरना, जन्मना-भरना, जानना न जानना, इत्यादि कुछ नहीं है-वह शून्य से भी प्रतीत है.॥२॥ वह न बनता है न बिगड़ता है, न होता है न जाता है-वह मायातीत; निरंजन है-उसका पार नहीं है ॥ ३ ॥ आगे जो संकल्प उठता है उसे पड्गुणेश्वर और अर्धनारी नटेश्वर कहते हैं ॥ ४ ॥ उसे सर्वेश्वर, सर्वज्ञ; साक्षी, द्रष्टा, ज्ञानधन, परेश, परमात्मा, जगजीवन और मूलपुरुष कहते हैं ॥ ५॥ उसीको मूलमाया भी कहते हैं; वह बहुगुणी होता है। उसमें जब सृष्टि बनाने की इच्छा होती है तब उसीको. गुणक्षोभिणी कहते हैं; त्रिगुण उसीसे उत्पन्न होते हैं ॥ ६ ॥ फिर चेतनारूपी तथा सतोगुणरूपीः. विष्णु उत्पन्न होता है । यह तीनों लोक का पालन करता है ॥७॥ इसके बाद ज्ञान-अज्ञान-मिश्रित रजोगुणरूपी ब्रह्मा होता है । इससे तीनों

  • आत्मनिवेदन के तीन प्रकार हैं:-जड़, चंचल और निश्चल । “ मैं और मेरा,

जो कुछ है, सर्व ईश्वर का है-यह बुद्धि होना जड़ आत्मनिवेदन है; यह मालूम होना चंचल आत्मनिवेदन है कि, जो कुछ है सब ईश्वरस्वरूप है-अर्थात् कुछ है और वह: ईश्वर-स्वरूप है-यह मालूम होना चंचल आत्मनिवेदन है; पर निश्चल आत्मनिवेदन, वह है: कि जिसमें यह निश्चय हो जाय कि, परब्रह्मस्वरूप के अतिरिक्त और कुछ है ही नहीं ।