पृष्ठ:दासबोध.pdf/४०८

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समास ८] काल का रूप ३२६ की सम्मति है ॥ २८ ॥ शूरता में जो प्रखर होता है उसे छोटे-बड़े सब मानते हैं । निकम्मा और उद्योगी एक कैसे हो सकते हैं ? ॥ २६ ॥ जो त्याग-अत्याग और तर्क विषय जानता है, कहने के अनुसार चलना जानता है, पिंड-ब्रह्मांड आदि सब यथायोग्य जानता है उस उत्तम- लक्षणी सर्वज्ञाता पुरुष का समागम करने से सहज ही सार्थकता होती है॥३०॥३१॥ आठवाँ समास-काल का रूप । ॥ श्रीराम ॥ मूलमाया ही जगदीश्वर है । उसीसे सृष्टिक्रम के अनुसार अष्टधा प्रकृति का आकार फैला है ॥ १॥ जब यह कुछ नहीं था तब एक निरा- कार, आकाश की तरह, विस्तारमात्र था और काल, इत्यादि की कल्पना भी न थी ॥२॥ जब से उपाधि का विस्तार हुश्रा तभी से काल देखने में आया, अन्यथा काल के लिए स्थान ही नहीं है ॥३॥ एक चंचल है और एक निश्चल है; इनके अतिरिक्त और काल कहां है ? जव तक चंचल है तभी तक काल कह लो॥४॥ श्राकाश अवकाश को कहते हैं, अवकाश विलम्ब को कहते हैं-उस विलम्बरूप काल को जान लेना चाहिए ॥ ५॥ वह विलंब सूर्य के कारण मालूम होता है; इसीसे सब की गणना लगती है और पल से युग तक गिनती की जाती है ॥६॥ सूर्य ही के कारण पल, घड़ी, पहर, दिन, संध्या, पखवाड़ा, महीना, छमासा, वर्ष और युगों की सृष्टि हुई है ॥ ७॥ सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग श्रादि की संख्या भूमंडल में सूर्य ही के योग से चली है और शास्त्रों में देवताओं की जो बड़ी बड़ी अवस्थाएं कहीं हैं वे भी सब सूर्य ही के कारण उत्पन्न हुई हैं ! ॥ ८ ॥ त्रिगुणात्मक ब्रह्मा-विष्णु-महेश की खटपट (उत्पत्ति, स्थिति, संहार) सूक्ष्मरूप से और विशेष लगाव के साथ, सब पिंडों में हो रही है, परन्तु लोग सांप्रदाय या रीति छोड़ते हैं, और इसी कारण उन्हें चटपट लगती है ॥ ६॥ मिश्रित त्रिगुण अलग अलग नहीं हो सकते और उन्हींसे, आदि से अंत तक, सृष्टि की रचना है। यह कैसे कहा जाय कि, कौन बड़ा है और कौन छोटा है? ॥१०॥ अस्तु । ये ज्ञाता के काम हैं, अज्ञाता व्यर्थ के लिए भ्रम में फंसता है.। अनुभव के द्वारा मुख्य तत्व जानना चाहिए ॥ ११ ॥ उत्पन्नकाल, सृष्टि- ४२