पृष्ठ:दासबोध.pdf/४०९

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३३० दासबोध। [दशक १२ काल, स्थितिकाल, संहार-काल, आदि-अंतका सब काल, विलम्बरूपी है ॥ १२ ॥ प्रसंग के अनुसार काल का नाम पड़ जाता है । यह बात अगर अनुमान से अच्छी तरह ध्यान में न पाती हो तो आगे और सुनोः- ॥ १३ ॥ वर्षाकाल, शीतकाल, उष्णकाल, संतोषकाल, सुखदुख या अानन्द- काल प्रसंगानुसार मालूम होते हैं ॥ १४ ॥ प्रातःकाल, मध्यान्हकाल, लायंकाल, घसंतकाल, पर्वकाल, कठिनकाल, इत्यादि सब प्रसंगानुसार जान पड़ते हैं ॥ १५ ॥ जन्मकाल, बालकाल, तरुणकाल, वृद्धकाल, अंत- काल, और विषमकाल आदि समय के रूप हैं ॥ १६ ॥ सुकाल, दुष्काल, प्रदोषकाल और पुण्यकाल आदि सब समय मिल कर काल कहलाता है ॥ १७ ॥ होता कुछ है और मालूम होता कुछ है-इसका नाम है विवेकहीनता ! नाना प्रकार की प्रवृत्ति के लोग प्रवृत्ति ही जानते हैं ॥ १८ ॥ प्रवृत्ति अधोमुख चलती है, निवृत्ति उच्चमुख चलती है। उच्चमुख चलने से नाना सुख होते हैं। उन्हें विवेकी ही जानते हैं ॥ १६ ॥ जहां से ब्रह्मांड-रचना हुई है वहां तक विवेकी पुरुप दृष्टि डालता है और विवरण करते करते पूर्वापर (मूल ) स्थिति को प्राप्त होता है ॥ २० ॥ जो 'प्रपंच' में रह कर 'परमार्थ करता है और प्रारब्धयोग से लोगों में रहता है वह भी उसी स्थिति को प्राप्त होता है ॥ २१ ॥ सब का मूल एक ही है; पर उन्हींमें से कोई ज्ञाता हैं कोई मूर्ख हैं । विवेक से तत्काल परलोक साधना चाहिए ॥ २२ ॥ इसीसे जन्म सार्थक होता है और दोनों तरह के लोग उसे अच्छा कहते हैं । वास्तव में मुख्य तत्व का विवेक करना चाहिए ॥ २३ ॥ जो लोग विवेकहीन हैं. उन्हें पशु-समान जानो । उनका भाषण सुनने से परलोक कैसे मिल सकता है ? ॥२४॥ अच्छा, इससे हमारा क्या जाता है ! जैसा करते हैं वैसा फल पाते हैं। जो बोते हैं वही उगता है और वही भोगते हैं ! ॥ २५॥ आगे भी जो जैसा करेगा वह वैसा पावेगा। भक्तियोग से भगवान् मिलता है और भगवान् तथा भक्त का मेल हो जाने से अपूर्व समाधान प्राप्त होता है ॥ २६ ॥ जो मरने पर अपनी कीर्ति नहीं छोड़ जाते वे यों ही संसार में आते हैं और चले जाते हैं-चतुर होकर भूल जाते हैं क्या बतलावें। ॥ २७ ॥ जान तो ऐसा पड़ता है कि, सभी यहां का यहीं रह जाता है; पर क्यों भाई, बतलाते क्यों नहीं हो; कौन क्या ले जाता है ? ॥ २८ ॥ सांसारिक पदार्थों के विषय में उदासीनता रखना चाहिए और निश्चिन्त होकर विवेक का साधन करना चाहिए। ऐसा करने से जगदीश, जो