पृष्ठ:दासबोध.pdf/४१

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दासबोध । 64 प्रकार, किया महन्त को चाहिए कि वह और अनेक महन्त बनावे तथा उनमें युक्ति और बुद्धि अच्छी तरह भर दे इस प्रकार अनेक ज्ञाता महन्त बनाकर, उसे चाहिए कि, नाना देशों में देश के नाना प्रान्तों में फैला दें।" इस कर्तव्य का यथोचित पालन करने के लिए परिभ्रमण, विवेक, कट-सहन-शक्ति, मृत्यु की निर्भयता, यश की लालसा, वैराग्य, निस्पृहता, चातुर्य या विचक्षणता, मृदुवचन, क्षमा, शान्ति, सहिष्णुता, परोपकार-बुद्धि, उत्कट इच्छा या उत्कंटा आदि अनेक विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है। इन सब गुणों का वर्णन समर्थ ने अपने ग्रन्थों में (विशेष कर दानवोध में) किया है। खेद की बात है कि अब तक प्रमाण सहित इस बात का पूरा पूरा पता नहीं लग सका है कि समर्थ के ये सब महन्त भ्रमण करते समय, या मठ में रहते हुए, क्या क्या काम, किस करते थे; उनके काम करने को रीति या प्रणाली कैसी थी; वे स्वयं किस प्रकार रहते थे--- उनका बर्ताव कैसा था । इन महन्तों के कार्यों का सप्रमाण इतिहास मिल जाने से श्रीराम- दासस्वामी के जीवनचरित के मुख्य भाग पर अप्रतिम प्रकाश हो जायगा । (आ) श्रीसमर्थ के शिष्य । इसमें सन्देह नहीं कि उनके, हज़ारों स्त्री और पुरुप, शिप्य थे। पुरुषों में सिर्फ एक छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम लिख देना, इस लेख के लिए, वस होगा । स्त्री-वर्ग में सीताबाई, चिमणाबाई, अम्बिका, द्वारकावाई, भवाबाई, कृष्णा- बाई, वेणवाई, मनावाई, अन्नपूर्णा, गंगाबाई, गोदावदि आदि प्रसिद्ध हैं। वेणूवाई ने सीतास्वयंवर, मंगलरामायण, छन्दोरामायण, संकेतरामायण, लवकुशरामायण, मुन्दर- रामायण, अब्दरामायण और भापारामायण आदि कई ग्रन्थ रचे हैं। समर्थ के ग्रंथ । प्राचीन कवि और साधुओं का प्रन्ध-समुदाय ही ऐतिहासिक दृष्टि से राष्ट्रीय साहित्य हैं। उसका जितना सूक्ष्म और मार्मिक रीति से अभ्यास किया जायगा उतना ही उस समय का राष्ट्रीय ज्ञान अधिक होगा । प्रायः देखा जाता है कि भारत की किसी भी प्रान्त की प्राकृत भाषा में पहले गद्य-ग्रन्थ लिखने की प्रणाली न थी। यद्यपि बोलचाल की भाषा गद्य ही थी और दरवारी कागजपत्र भी गद्य ही की भाषा में लिखे जाते थे; पर कवि और साधु लोग प्रायः पद्य में ही ग्रन्थरचना करते थे। हाँ, इन साधु और कवियों की रचना-शैली में और मिन छन्दों के चुनने में अवश्य भेद पाया जाता है। प्रायः प्राचीन. साधुओं की कविता पौराणिक विपयों के आधार पर रची हुई पाई जाती है। उनकी कविता में स्वतंत्र स्वना बहुत कम देख पड़ती है। श्रीरामदासस्वामी ने किसी एक पौराणिक विषय पर बहुत कम रचना की है। उनकी प्रायः सब रचना स्वतंत्र है। उन्होंने याही मनोरंजन के लिए कोई कविता नहीं लिखी; उनकी सारी कविता में कोई न कोई गुख्य · हेतु है। प्राचीन प्रथा के अनुसार समर्थ ने भी अपने सब ग्रन्थ पद्यात्मक लिखे हैं। वात केवल इतनी ही है कि काव्यरस की प्रधानता को अपना हेतु समझ कर उन्होंने अन्यों की 1