पृष्ठ:दासबोध.pdf/४१०

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ससास ९] प्रयत्न का उपदेश। ३३१ अलभ्य है, मिलता है ॥ २६ ॥ और जगदीश-लाभ के समान और कोई लाम नहीं है । अावश्यतानुसार सब कुछ करते हुए, और गृहकर्म करते हुए भी, समाधान प्राप्त होता है ॥ ३० ॥ प्राचीन समय में जनक आदि अनेक राजा, राज्य करते हुए भी, भग- वान् को प्राप्त करते थे-अब भी कितने ही पुण्यश्लोक ऐसे हैं ! ॥ ३१ ॥ राजा की यदि मृत्यु भावे और राजा यदि लाख करोड़ रुपये भी उसे देने कहे तो भी मृत्यु कुछ उसे छोड़ नहीं सकती ॥ ३२ ॥ ऐसा यह परा- धीन जीवन है ! इसमें नाना दुःख, कष्ट, उद्वेग और चिन्ता आदि में कहां तक फँसा रहे ? ॥ ३३ ॥ अतएव, संसार की हाट लगी है। इसमें ईश्वर की नफा कर लो; तभी इन कष्टों का बदला मिलेगा ॥ ३४ ॥ नववाँ समास-प्रयत्न का उपदेश । ॥ श्रीराम ॥ दुर्वल, लाचार, दरिद्री, भालसी, बहुत खानेवाला, ऋणियां, मूर्खता के कारण सब व्यस्त है और कुछ भी नहीं है ॥१॥ खाने को नहीं, पीने को नहीं, पहनने को नहीं, विछाने को नहीं, अोढ़ने को नहीं और झोपड़ी भी नहीं; अभागी है ॥ २॥ सहायक नहीं, कुटुम्बी नहीं, इष्ट नहीं, मित्र नहीं, कहीं पहचानवाले भी नहीं दिखते, आश्रयरहित है और परदेशी है ॥ ३॥ ऐसा पुरुप क्या करे ? किसका सहारा पकड़े ? बचे या भरे ? किस प्रकार रहे ?॥४॥ ऐसा कोई प्रश्न करता है; इसका कोई उत्तर देता है; श्रोताओं को अन सावधान होकर सुनना चाहिए:- ॥ ५॥ छोटा बड़ा कोई भी काम हो, किये बिना नहीं होता। इस लिए अभागी पुरुष ! प्रयत्न कर, जिससे तू भी भाग्यवान् हो ! ॥६॥ जब चित्त ही सावधान नहीं रहता और यत्न भी पूरा पूरा किये नहीं होता तब सुखसन्तोप कैसे मिल सकता है ? ॥ ७ ॥ इस लिए आलस छोड़ना चाहिए, परिश्रम के साथ यत्न करना चाहिए और दुश्चित्तता को निकाल वाहर करना चाहिए ॥८॥ प्रातःकाल उठना चाहिए, प्रातःस्मरण करना चाहिए और नित्य-नियमानुसार कुछ सुभाषित भी याद करना चाहिए ॥ ६॥ पीछे का उधरना ( Revision या मुताला) चाहिए; आगे का पाठ करना चाहिए; नियम से चलना चाहिए; और व्यर्थ बक बकन