पृष्ठ:दासबोध.pdf/४११

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३३२ दासबोध। [दशक १२ करना चाहिए ॥ १० ॥ दिशा के लिए दूर जाना चाहिए, पवित्र होकर श्राना चाहिए और लौटते समय कुछ न कुछ लाना चाहिए, खाली हाथ पाना अच्छा नहीं है ॥ ११ ॥ धौतवस्त्र निचोड़ कर डाल देना चाहिए, पैर धोना चाहिए और फिर यथाविधि देवदर्शन और देवार्चन करना चाहिए ॥ १२॥ इसके बाद कुछ फलाहार करके अपना व्यवसाय करना चाहिए और गैर-लोगों को भी अपना समझना चाहिए ॥ १३ ॥ सुन्दर अक्षर लिखना चाहिए, स्पष्ट और ठीक पढ़ना चाहिए और मनन करके मार्मिक अर्थ जानना चाहिए ॥ १४ ॥ ठीक ठीक और सुन्दर रीति से पूछना चाहिए, स्पष्ट करके बतलाना चाहिए और अनुभव विना न बोलना चाहिए, क्योंकि ऐसा बोलना पाप है ॥ १५ ॥ सावधानी रखनी चाहिए; नीति-मर्यादा रखनी चाहिए और क्रियासिद्धि ऐसी करनी चाहिए जो लोगों को पसन्द हो ॥ १६ ॥ आये हुए का समाधान, हरि- कथा, अध्यात्म-निरूपण और सदा प्रसंग देख कर बर्ताव करना चाहिए ॥१७॥ ताल, धाटी, मुद्रा, अर्थ, प्रमेय, अन्वय, इत्यादि शुद्ध होने चाहिए और गद्यपद्य आदि के दृष्टान्त शुद्ध तथा क्रमानुसार होने चाहिए ॥१८॥ गाना, बजाना, नाचना, हावभाव दिखाना, सभारंजक वचन कहना, उपकथा, छन्द-प्रबन्ध, अादि ठीक होना चाहिए ॥१६॥ बहुतों का समा- धान रखना चाहिए, जो बहुतों को अच्छा लगे वही बोलना चाहिए और कथा में श्रुटि न पड़ने देना चाहिए ॥२०॥ लोगों को बहुत चिढ़ाना न चाहिए, लोगों का हृदय खोल देना चाहिए-ऐसा करने से सहज ही यश फैलता है ॥ २१॥ भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, योग, नाना साधनों के प्रयोग, जिनके मननमात्र से ही भवरोग दूर होता है, बताना चाहिए ॥ २२ ॥ जैसे बचन बोलना चाहिए वैसी ही चाल चलना चाहिए, इससे स्वाभाविक ही महन्तपन प्राप्त होता है ॥ २३ ॥ युक्ति-रहित चाहे जैसा अच्छा योग हो वह दुराशा का रोग है । उससे साथ में रहनेवाले लोगों को कष्ट होता है ॥ २४ ॥ श्रतएव, ऐसा कभी न करना चाहिए । लोगों को कष्ट न देना चाहिए और हृदय में समर्थ रघुनाथजी का चिन्तन करना चाहिए ॥ २५ ॥ उदासवृत्ति लोगों को पसंद होती है। इसके सिवाय कंथानिरूपण भी करना चाहिए और रामकथा सम्पूर्ण ब्रह्मांड में फैला देना चाहिए ॥ २६ ॥ जो महंत सांगोपांग लक्षणों से युक्त है, सुन्दर लोकप्रिय गाना जानता है, उसके पास वैभव की क्या कमी है ? जैसे आकाश में तारागण एकत्र रहते हैं वैसे ही, ऐसे महन्त के यहां लोग जमा रहते हैं ॥ २७ ॥ जहां बुद्धि नहीं है वहां सारी व्यवस्था ही