पृष्ठ:दासबोध.pdf/४१२

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समास १०] उत्तम पुरुष । रहती है । एक बुद्धि के बिना सब व्यर्थ है ॥ २८ ॥ बुद्धि का विस्तार करके ब्रह्मांड से भी बड़ा हो जाना चाहिप, ऐसी दशा में नीच अभाग्य कहां से श्राचेगा? ॥ २६ ॥ इतने से अाशंका मिट जाती है; यत्न में वुद्धि का प्रवेश हो जाता है और अन्तःकरण में कुछ श्राशा भी बढ़ जाती दसवाँ समास-उत्तम पुरुष । ॥ श्रीराम ।। पेट भर भोजन करके बाकी अन्न बाँट देना चाहिए; व्यर्थ फेंक देना धर्म नहीं है ॥१॥ उसी प्रकार ज्ञान से पहले स्वयं तृप्त हो लेना चाहिए फिर वही ज्ञान लोगों को बताना चाहिए। तरैया को चाहिए कि वह भूबनेवाले को इवने न दे ॥ २॥ पहले स्वयं उत्तम गुण ग्रहण करना चाहिए; और फिर वही बहुतों को बतलाना चाहिए; बिना वर्ते जो बोला जाता है वह मिथ्या है ॥३॥ स्नान-संध्या और देवार्चन करके एकान्त में जपध्यान करना चाहिए और हरिकथा तथा अध्यात्म-निरूपण करना चाहिए ॥४॥ शरीर परोपकार में लगाना चाहिए, बहुतों के काम आना चाहिए और किसीकी हानि न होने देना चाहिए ॥५॥ दुखी और पीड़ित को जानना चाहिए, यथा-शक्ति उसके काम आना चाहिए और सब से मीठे वचन बोलना चाहिए ॥ ६ ॥ दूसरे के दुख से दुखी और दूसरे के सुख से सुखी होना चाहिए और मृदु वचनों से प्राणिमात्र को मिला लेना चाहिए ॥ ७ ॥ बहुतों के अन्याय क्षमा करना चाहिए, बहुतों का काम करना चाहिए और गैर-लोगों को अपनाना चाहिए ॥ ८॥ दूसरे के मन की बात जानना चाहिए और उसीके अनु- सार वर्ताव करना चाहिए तथा लोगों को नाना प्रकार से परखते रहना चाहिए ॥ ६॥ मित-भाषण करना चाहिए, तत्काल ही उत्तर देना चाहिए और कभी क्रोध में न आना चाहिए; क्षमारूप रहना चाहिए ॥१०॥ सव आलस छोड़ देना चाहिए, बहुत प्रयत्न करना चाहिए और किसीका मत्सर न करना चाहिए ॥ ११ ॥ उत्तम पदार्थ दूसरे को देना चाहिए, शब्द सोच कर बोलना चाहिए और सावधानी के साथ अपनी गृहस्थी सम्हालना चाहिए ॥ १२॥ मरण का स्मरण रखना चाहिए, हरिभक्ति में तत्पर रहना चाहिए और इस प्रकार, भरने के बाद भी