पृष्ठ:दासबोध.pdf/४१४

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समास १०] उत्तम पुरुष। ३३५ हैं ॥ ३१ ॥ ऐसे महानुभाव पुरुप को समुदाय एकत्र करना चाहिए और भक्तियोग से उस देवाधिदेव परमात्मा को अपना बनाना चाहिए ॥३२॥ अपने को तो एक दिन अकस्मात् मर जाना है। फिर भजन कौन करेगा, ऐसा समझ कर और भी बहुत से लोगों को भजन में लगाना चाहिए ॥ ३३ ॥ हमारी तो यह प्रतिज्ञा है कि, शिप्यों ले और कुछ न मांगे; सिर्फ इतना माँगे कि, भाई, हमारे मरने पर तुम लोग जगदीश का भजन करते रहना! ॥३४॥ अतएव, बड़े उत्साह के साथ समुदाय एकत्र करना चाहिए और हाथोंहाथ देवाधिदेव को प्रसन्न कर लेना चाहिए ॥ ३५ ॥ अव समुदाय के लिए दो बातों की आवश्यकता है। श्रोता लोग साव- धानी के साथ इस जगह मन लगावें ! ॥ ३६ ॥ जिस युक्ति से बहुतों में भक्ति पाती है वह प्रत्यक्ष प्रबोधशक्ति ( समझाने की ताकत) है । बहुतों का मन अपने हाथ में लेना चाहिए ॥ ३७॥ पीछे जो उत्तम गुण बतलाये गये वे तो होना ही चाहिए; पर प्रबोधशक्ति (उपदेश देने का वल) उस सब से अधिक आवश्यक है ॥ ३८ ॥ दूसरी बात यह है कि, जो ... बोलने के अनुसार चलता है, और पहले स्वयं करके तब बतलाता है, उसकी बातें सभी लोग सत्य मानते हैं ॥३६॥ जो बातें लोगों को पसन्द नहीं हैं ये बातें लोग मानते ही नहीं-और अकेला आदमी क्या कर सकता है ? ॥ ४०॥ इस लिए साथी होने चाहिए, थोड़ा थोड़ा उन्हें सिखाना चाहिए और धीरे धीरे विवेक से पार लगाना चाहिए ॥ ४१ ॥ परन्तु ये विवेक के काम हैं-इनको विवेकी ही ठीक ठीक कर सकता है, अन्य लोग तो बिचारे भ्रम से झगड़ने ही लगते है ॥ ४२ ॥ बिना सेना के बहुतों से अकेला लड़ना कैसे हो सकता है ? इस कारण बहुतों को राजी रखना चाहिए ॥ ४३ ॥