पृष्ठ:दासबोध.pdf/४२

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श्रीसमर्थ रामदासस्वामी । 1 रचना पद्यात्मक नहीं की; किन्तु उन्होंने अपने सब ग्रन्य उपदेश के लिए रचे है; अधीन जनसमाज का सुधार ही उनके ग्रन्थों का प्रधान हेतु है । इससे यह अनुमान निकल सकता है कि यदि उस समय गद्य लिखने की प्रथा होती तो वे भी अपने ग्रन्थ गद्य ही में लिखने । अब यह देखना चाहिए कि समर्थ कवि थे या नहीं; यदि वे कवि थे तो किस श्रेणी के कवि थे। उनकी पद्य-रचना को देख कर ही वहुतरे लोग उन्हें 'कवि' कहते हैं। इसका कारण यही है कि सर्व साधारण लोग पद्य-रचना ही को काव्य समझने लगे हैं। परन्तु साहित्य-शास्त्र की परिभाषा के अनुसार समर्थ कवि नहीं थे। हाँ, समर्थ ने 'कवि' और 'कविता' के जो लक्षण अपने “ दासबोध" में बनाये हैं, और जिनका उदेख हम आगे चल कर करेंगे, उनके अनुसार वे 'कवि'-अधीन आधुनिक भाषा में प्रतिभाशाली और प्रासादिक उपदेशक अवश्य थे। उनकी कविता में प्रसाद गुण भरा हुआ है और मनोहर दृष्टान्तों की भी विपुलता है। परन्तु उन्होंने अपने ग्रन्थों में दृष्टान्तों की योजना, किसी काव्य-ग्रन्थ की तरह, केवल रमणीयता या चमत्कार उत्पन्न करने के लिए, नहीं की है। जहाँ जहाँ दृष्टान्त दिये गये हैं वहाँ वहाँ प्रतिपादित विषय का परिपोपण ही प्रधान हेतु है। उनके अन्धों में अदभुत वक्तृत्व शक्ति पाई जाती । विषय-निरूपण का प्रवाह ऐसा अप्रतिबद्ध है; शब्दों की योजना ऐसी समुचित है और विचार-पद्धति ऐसी चित्ताकर्षक है कि पड़नेवाले को यही भास होता है कि मानो कोई साक्षान् बृहस्पति या वाचस्पति व्याख्यान दे रहा है। यही कारण है कि उनके दासबोध में प्रतिपादित सिद्धान्त विषय ताविक, गहन और शास्त्रीय होने पर भी, ऐसा मालूम होता है कि मानो हम कोई आल्हाद्- जनक काव्य ही पढ़ रहे हैं। उपर्युक्त विवेचन से पाठकों को यह मालूम हो जायगा कि उनके ग्रन्थों का स्वरूप कैमा है और श्रीरामदासस्वामी कैसे उत्तम उपदेशक कवि थे। आधुनिक कवियों की दृष्टि से भी उनके ग्रन्थों में अनेक काव्यगुण पाये जाते हैं। उनके रामायण के युद्धकाण्ड में वीर- रस का अच्छा परिपाक हुआ है, उनके पद और अभंगों में करुणा-रस का अनुपम आविर्भाव हुआ है। 'दासबोध' में निद्रा का निरूपण करते हुए उन्होंने हास्य-रस और वीभत्स-रस का अच्छा चित्र खींचा है। काव्य-चमकृति के भी दो एक उदाहरण उनके ग्रन्थों में मिलते हैं। दासबोध के चौदहवें दशक के चौथे समास में 'एकासड़ी' नामक अक्ष- रालंकार है। अब यह देखना चाहिए कि समर्थ के विचार कवि और कविता के सम्बन्ध में कैसे थे। इससे पाठकों को यह बात, समर्थ ही के मुख से, भली भाँति मालम हो जायगी कि वे कैसे कवि थे। समर्थ के मतानुसार गद्य, पद्य ग्रन्थ लिखनेवाले और नाना शास्त्रों की अहा- पोह-विवेचनपूर्वक च---करनेवाले पुरुप कवि हैं। इतना ही नहीं; किन्तु वे प्रासादिक कवि हैं। समर्थ की दृष्टि से प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति ही कवि है। नवरात्मक कविता रचनेवाला । ३