पृष्ठ:दासबोध.pdf/४२१

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३४२ दासबोध। [ दशक १३ के से श्रोले गिरते हैं, पर्वत उड़ा देनेवाली हवा चलती है, ऐसा निविड़ अंधकार छा जाता है कि, जिसकी उपमा ही नहीं ॥ १५ ॥ सम्पूर्ण नदियां और समुद्र एक हो जाते हैं। मानो नाकाश से ही नदियाँ गिर रही हैं; सम्पूर्ण धाराएं मिल जाती है; अन्तर नहीं रहता; पानी ही पानी हो जाता है ! ॥ १६ ॥ उसमें पर्वत के समान मच्छ, कूर्म और सर्प गिरते हैं, गर्जना होते ही जल में जल मिल जाता है ॥ १७ ॥ सातो समुद्र आवरण ' में मिल जाते हैं; 'आवरण' का घेरा दूट जाता है, सव जलमय होने के बाद प्रलयपावक प्रवल होता है ॥ १८॥ ब्रह्मांड के समान तप्त लोहा जैसे जल समूह को सोख ले वैसा ही हाल उस जल का होता है ॥१६॥ अर्थात् सम्पूर्ण पानी सूख जाता है और उसके वाद फिर अग्नि ही अग्नि छा जाता है; उस अग्नि को प्रलय-चात सारता है ॥ २० ॥ जैसे अंचल डुलाने से दीपक बुझ जाता है वैसे ही प्रलय- पावक भी बुझ जाता है ! इसके बाद असम्भवनीय वायु प्रबल होता है ॥ २१ ॥ परन्तु बहुत विस्तृत पोलेपन में वह वायु भी लय हो जाता है और इस प्रकार यह सम्पूर्ण पंचभूतात्मक पसारा समाप्त हो जाता है ! ॥ २२ ॥ मूलमाया, जो महद्भूत है, वह भी अपने में ही भूल कर लय हो जाती है ! इस प्रकार सम्पूर्ण पदार्थमात्र के रहने को ठौर नहीं रहता ॥ २३ ॥ सम्पूर्ण दृश्य जगत् को प्रलय खा जाता है । जड़ और चंचल सब का लय हो जाता है और शाश्वत परब्रह्म रह जाता है।॥२४॥ पाँचवाँ समास-सृष्टि की कहानी। ।। श्रीराम ॥ कोई दो उदासीन साधु पृथ्वीपर्यटन करते थे। उन्होंने मनोरंजन के लिए एक कहानी छेड़ दी ॥१॥ उन दो में से एक श्रोता हुआ; दूसरा वक्ता बना । श्रोता वत्ता से कहता है कि," भाई, कोई अच्छी सी कहानी तो सुनानो" i वसा कहता है, " अच्छा, सावधान होकर सुनोः॥२॥ 'कोई एक स्त्री-पुरुष (प्रकृति-पुरुष) थे; दोनों में बड़ा प्रेम था । वे सदा एक साथ रहते और कभी अलग न होते थे ॥३॥ इस प्रकार कुछ समय