पृष्ठ:दासबोध.pdf/४२४

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समास ] लघुवोध। ३४५ नहीं रहता ॥ ६॥ अवकाश (आकाश) नाममात्र के लिए है; सो भी, विचार करने से, नहीं रहता । पंचभौनिक कभी नहीं रह सकता ॥१०॥ ऐसा पांच भूतों का विस्तार है: यह निश्चयपूर्वक नाशचंत है । निराकार श्रात्मा को सत्य और शाश्वत जानना चाहिए ॥११॥ वह श्रात्मा किसीको मालूम नहीं होता; बिना शान के उसका आकलन नहीं होता; इस लिए उसे संतजनों से पूछना चाहिए ॥ १२॥ सजनों से पूँछने पर वे कहते हैं कि, वह अविनाशी है । आत्मा के लिए जन्म-मृत्यु का नाम हीन लेना चाहिए ॥१३॥ निराकार में आकार भासता है और श्राकार में निराकार भासता है-निराकार और आकार विवेक से पहचानना चाहिए ॥ १६ ॥ निराकार को नित्य और श्राकार को अनित्य जानना चाहिए; इसीको नित्य-अनित्य का विचार कहते हैं ॥१५॥ सार में प्रसार भासता है और असार में सार भासता है-सारासार का विचार खोज कर देखना चाहिए ॥ १६ ॥ पंचभौतिक मायिक है; पर अनेक रूपों से भासता है और आत्मा एक सर्वव्यापी है ॥ १७ ॥ चारो भूतों में जैसे - आकाश व्याप्त है वैसे ही गगन में भी सधन (परब्रह्म) व्याप्त है। विचारपूर्वक देखने से आकाश और ' वस्तु' (परब्रह्म ) अभिन्न दिखते हैं ॥ १८ ॥ उपाधि के योग से ही श्राकाश है, यदि उपाधि न हो तो आकाश क्या है ? वह निराभास है-और निराभास ही अविनाशी है- चैसा ही श्राकाश है ॥ १६ अस्तु । अब यह विवंचना वस करो । परन्तु जिसका नाश न देख पड़ता हो वही विवेक से अनुमान में लाना चाहिए ॥२०॥ यह विचार मुख्य जानना चाहिए कि, परमात्मा निराकार है। अब यह विचार करना चाहिए कि, 'हम' कौन हैं ॥ २१ ॥ देहान्त के समय वास्तव में वायु चला जाता है । अगर इसे झूठ समझो तो अभी श्वासोच्वास रोक कर देख लो ! ॥ २२ ॥ श्वास रोकने से देहपात होता है; देहपात होते ही मुरदा हो जाता है। मुरदे से कर्तृत्व कभी नहीं हो सकता॥२३॥ देह विना वायु कुछ नहीं कर सकता, वायु बिना देह कुछ नहीं कर सकती । विचार करने से जान पड़ता है कि, एक के बिना एक कुछ नहीं कर सकता ॥ २४ ॥ यों ही देखने पर मनुष्य दिखता है, विचार करने से कुछ भी नहीं है-है वही 'वस्तु'-इस प्रकार अभेद भक्ति का लक्षण पह- चानना चाहिए ॥ २५ ॥ यदि हम अपने को कर्ता कहते हैं तो हमारी इच्छा ही के अनुसार सब होना चाहिए; पर ऐसा नहीं होता; अतएव ४४