पृष्ठ:दासबोध.pdf/४२६

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समास ७ ] अनुभव का विचार। ३४७ मुख्य है: फिर, इसके बाद, सारासार विचार करना चाहिए । सारासार- विचार ले प्रकृति का संहार हो जाता है ॥ ११ ॥ विचार से प्रकृति का संहार हो जाता है-दृश्य रहते हुए भी नष्ट हो जाता है और अध्यात्म- . श्रवण ले अंतरात्मा निर्गुण में संचार करता है ॥ १२॥ चढ़ता हुआ अर्थ लागने से अन्तरात्मा चढ़ते ही जाता है और उतरे हुए अर्थ से भूमंडल में उतर पाता है ॥ १३ ॥ अर्थ के अनुसार आत्मा हो जाता है। जिधर ले जाओ उधर जाता है । अनुमान से वह कभी कभी संदेह में भी पड़ता हैं ॥१४॥ यदि निस्सन्देह अर्थ चलता है तो आत्मा भी निस्सं- देह हो जाता है और अनुमान अर्थ से अनुमानरूप हो जाता है ॥ १५ ॥ नवरसिक अर्थ होने से श्रोता नवरसिक ही हो जाते हैं और कुअर्थ होने से सब श्रोता भी कुअर्थी हो जाते हैं ॥ १६॥ जैसा जैसा संग होता है वैसा ही वैसा गिन का रंग भी बदलता जाता है । इस लिए उत्तम मार्ग देख कर चलना चाहिए॥१७॥ उत्तम भोजनों का बखान करने से मन भी भोजनाकार ही हो जाता है । वनिता के लावण्य का वर्णन सुनने से मन उसीमें जा लगता है ॥ १८ ॥ सव पदार्थ-वर्णन कहां तक बतलाया जाय ? इतने ही से समझ लेना चाहिए कि, ऐसा होता है या नहीं ॥ १६॥ जो जो देखा और सुना जाता है वह सब मन में दृढ़ता से परीक्षावंत पुरुप उसमें से हित-अनहित की परीक्षा करता है ॥२०॥ सब छोड़ कर केवल ईश्वर को ढूंढ़ना चाहिए; तभी कुछ मर्म मिलता है ॥ २१ ॥ ये नाना प्रकार के सुख ईश्वर ही ने बनाये हैं, परन्तु लोग उसको भूले हुए हैं, और जन्म भर भूले ही रहते हैं ॥ २२ ॥ स्वयं पर- मात्मा हो ने कहा है कि, सब छोड़ कर मुझे ढूंढो * परन्तु लोगों ने भग- वान् की बात नहीं मानी ! ॥ २३ ॥ इसी लिए तो नाना दुःख भोगते हैं-सदा कप्टी होते हैं। मन में सुख चाहते हैं; पर कहां ठिकाना है ? ॥ २४ ॥ जिससे अनेक सुख मिलते है उसको ये पागल भूले हुए हैं। सुख सुख कहते ही, दुख भोगते हुए, मर जाते हैं ॥ २५ ॥ चतुर मनुष्य को ऐसा न करना चाहिए, जिससे सुख हो वही करना चाहिए और ब्रह्मांड से बाहर तक ईश्वर को ढूंढ़ते जाना चाहिए। ॥ २६ ॥ जन मुख्य ईश्वर ही प्राप्त होगया तब फिर उसे कमी क्या रही ? लोग पागल हैं जो विवेक को छोड़ देते हैं ॥ २७ ॥ विवेक का फल सुख है और अवि-

  • सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।-(भगवद्गीता १८६६६)

वैठ जाता