पृष्ठ:दासबोध.pdf/४२८

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सगार ८] कर्ता कौन है? ३४६ कोई 'विरंणाको, कोई 'बखणा' को और कोई 'रेचंणा' को लव का कर्ता बतलाते हैं ॥ १४ ॥ कोई कहता है कि, 'खलया ' कर्ता है,) कोई कहता है, कार्तिक स्वामी कर्ता है और कोई कहता है कि, बैंकटेश सब कुछ करता है ॥ १५॥ कोई कहता है कि, गुरु कर्ता है, कोई कहता है कि, दत्तात्रेय कर्ता है और कोई कहता है कि मुख्य कर्ता जगन्नाथ है ॥ १६॥ कोई कहता है कि, ब्रह्मा कर्ता है. कोई कहता है; विष्णु कर्ता है और कोई कहता है कि, निश्चय करके महेश कर्ता है ॥ १७ ॥ कोई जहता है कि, पर्जन्य कर्ता है, कोई कहता है; वायु कर्ता है और कोई कहता है कि, निर्गुण देव करके भी अकर्ता है ॥ १८ ॥ कोई कहता है कि, माया करती है, कोई कहता है; जीव करता है और कोई कहता है कि, प्रारब्ध-योग सब करता है ॥ १६ ॥ कोई कहता है कि, प्रयत्न करता है, कोई कहता है; स्वभाव कर्ता है और कोई कहता है; कौन जाने कि, कौन करता है!२०॥ इस प्रकार कर्ता का प्रश्न उठते ही बाजार-सा लग जाता है। अब किसका उत्तर सही माना जाय ? ॥ २१ ॥ जो जिस देवता को मानता है वह उसीको कर्ता बतलाता है । यह लोगों का गड़बड़ वन्द नहीं होता ॥२२॥ अपने अपने अभिमान से सबों ने मन में निश्चय ही कर लिया है-इसका विचार हो ही नहीं सकता ॥ २३ ॥ अस्तु; वहुत लोगों के बहुत विचार है; परन्तु यह सब बाजार रहने दो, वास्तव में इसका विचार ऐसा है:- ॥ २४ ॥ श्रोताओं को सावधान हो जाना चाहिए, निश्चय से अनुमान का खण्डन करना चाहिए । ज्ञाता पुरुप को अनुभव सत्य जानना चाहिए ॥ २५ ॥ जो कुछ कर्ता करता है वह सब उसके वाद होता है। वह कर्ता के पहले न होना चाहिए ॥ २६ ॥ जो कुछ बनाया गया है वह पंचभौतिक है और ब्रह्मादि देव भी पंचभौतिक ही है। इस लिए यह तो हो नहीं सकता कि, उक्त पंचभूतात्मक देवों ने ही पंचभौतिक जगत् बनाया हो ! ॥ २७ ॥ पंचभूतों को अलग करके कर्ता को पहचानना चाहिए । क्योंकि पंचभूतिक तो स्वभाव ही से कार्य में आ जाता है ॥ २८ ॥ पंचभूतों से अलग निर्गुण है-उसमें कर्तापन नहीं है। निर्विकार में विकार कौन लगा सकता है ? ॥ २६ ॥ निर्गुण से कर्तव्य नहीं हो सकता और सगुण कार्य में आ जाता है। अतएव अव यह अच्छी तरह देखना चाहिए कि, कर्तव्यता आती किस पर है॥३०॥ परन्तु जो वास्तव में कुछ है ही नहीं उसके लिए यह पूछना कि, इसका