पृष्ठ:दासबोध.pdf/४३३

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दासबोध। [ दशक १३ रखना चाहिए, तथा सत्कीर्ति से भूमंडल को भर देना चाहिए ॥ २०॥ उत्तम को उत्तम अच्छा लगता है, निकृष्ट को वह अच्छा नहीं लगता- इसी लिए ईश्वर ने उसको अभागी बना रखा है ॥२१॥ सारा अभागीपन छोड़ देना चाहिए; उत्तम लक्षण ग्रहण करना चाहिए; हरिकथा, पुराण- श्रवण, नीति, न्याय, आदि का स्वीकार करना चाहिए ॥ २२ ॥ विवेक- पूर्वक चलना चाहिए; सब लोगों को राजी रखना चाहिए और धीरे धीरे सब को पुण्यात्मा बनाते रहना चाहिए ॥ २३ ॥ जैसे बालक के साथ, उसकी ही चाल से चलना पड़ता है और जैसा उसको रुचता है वैसा ही बोलना पड़ता है, वैसे ही धीरे धीरे लोगों को सिखला कर चतुर बनाना चाहिए ॥२४ ॥ सच तो यह है कि, सब का मन रखना चाहिए । यही सब चतुरता के लक्षण हैं । जो चतुर है वह चतुरों के अंग जानता है; अन्य लोग पागल हैं ॥ २५ ॥ परन्तु पागल को 'पागल' भी न कहना चाहिए, मर्म की बात कभी न बोलना चाहिए, तभी निस्पृह पुरुप दिग्विजय कर सकता है ॥ २६ ॥ अनेक स्थलों में, अनेक अवसरों को जान कर, यथोचित बर्ताव करना चाहिए और प्राणिमात्र का अंतरंग ( अभिन्नहृदय मित्र ) हो जाना चाहिए ॥ २७ ॥ एक दूसरे को राजी न रखने से सभी को तकलीफ होती है । एक दूसरे का मन तोड़ने से कुशल नहीं होती ॥ २८॥ अतएव जो सब का मन प्रसन्न रखता है वही सच्चा महन्त है-और उसीकी ओर सब लोग आकर्पित होते हैं ॥ २६॥