पृष्ठ:दासबोध.pdf/४३५

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दासबोध। [ दशक १४ लजित करने से लजाना न चाहिए और खिझाने से खिझना न चाहिए ॥ १५ ॥ शुद्ध मार्ग न छोड़ना चाहिए, दुर्जन से वाद न करना चाहिए, और चांडाल से सम्बन्ध न पड़ने देना चाहिए ॥ १६ ॥ तापटपन न रखना चाहिए, झगड़ाने से झगड़ना न चाहिए और अपनी निजस्थिति उड़ाने न देना चाहिए ॥ १७ ॥ हँसाने से हँसना न चाहिए, बुलाने से : वोलना न चाहिए और क्षण क्षण में चलाने से चलना न चाहिए ॥ १८॥ एक वेष न रखना चाहिए, एक ही साज से न रहना चाहिए और एक- देशीय न होकर, सर्वत्र भ्रमण करते रहना चाहिए ॥ १६॥ किसीका दृढ़ संसर्ग न होने देना चाहिए, दान न लेना चाहिए और सभा में सब समय न बैठना चाहिए ॥ २०॥ शरीर के साथ कोई नेम न लगा लेना चाहिए, किसीको भरोसा न देना चाहिए और किसी निश्चित वात का अंगीकार न करना चाहिए ॥ २१ ॥ नित्यनेम न छोड़ना चाहिए, अभ्यास न डूबने देना चाहिए और कुछ भी हो, परतंत्र न होना चाहिए ॥ २२ ॥ स्वतंत्रता मोड़ना न चाहिए, निरपेक्षता तोड़ना न चाहिए और क्षण क्षण में परापेक्ष न होना चाहिए ॥ २३ ॥ वैभव दृष्टि से देखना न चाहिए, उपाधिसुख में रहना न चाहिए और स्वरूपस्थिति का ध्यान न मोड़ने देना चाहिए ॥ २४ ॥ अनर्गलता (स्वेच्छाचार) न करना चाहिए, लोकलाज न रखना चाहिए और कभी कहीं श्रासका न होना चाहिए ॥ २५॥ परम्परा न तोड़ना चाहिए, उपासनामार्ग की उपाधि न मोड़ने देना चाहिए और ज्ञानमार्ग कभी न छोड़ना चाहिए ॥ २६ ॥ कर्ममार्ग न छोड़ना चाहिए, वैराग्य न मोड़ने देना चाहिए और साधन तथा भजन का कभी खंडन न करना चाहिए ॥ २७ ॥ बहुत वाद-विवाद न करना चाहिए, अनित्य बात मन में न रखना चाहिए और व्यर्थ क्रोध से हठ न करना चाहिए ॥ २८ ॥ जो न माने उसे बतलाना न चाहिए, घबड़ाहट लानेवाली बातें न करना चाहिए और एक जगह बहुत दिन न रहना चाहिए ॥ २६ ॥ कुछ उपाधि न फैलाना चाहिए, यदि फैलाई हो तो रखना न चाहिए और यदि रखी हो तो उसमें फँसना न चाहिए ॥३०॥ बड़प्पन से न रहना चाहिए, महत्व रख कर न बैठना चाहिए और कहीं भी कुछ मन की इच्छा न करना चाहिए ॥ ३१ ॥ सादापन (सादगी)न छोड़ना चाहिए, छोटापन न मोड़ना चाहिए और बलात् अपने शरीर में अभिमान न लाना चाहिए ॥ ३२॥ अधिकार बिना न बोलना चाहिए, डाँट कर उपदेश न देना चाहिए और परमार्थ को कभी संकुचित न रखना चाहिए ॥ ३३ ॥ कठिन पैराग्य न छोड़ना चाहिए, कठिन अभ्यास