पृष्ठ:दासबोध.pdf/४४

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श्रीसमर्थ रामदासस्वामी। दाय का कुछ परिचय पाठकों को दिलाते हैं। समर्थ के उपदेश-ग्रन्थों का भाण्डार अपरिमित है। समर्थ के शिष्य अनन्त कवि ने समर्थ के ग्रन्थों को समुद्र की उपमा दी है। इसमें सन्देह नहीं कि उनका ग्रन्थ-समुदाय समुद्र की तरह व्यापक और अथाह है; गम्भीर है और उसमें अनेक रत्न भरे पड़े हैं। श्रीरामदासस्वामी के ग्रन्थों की खोज महाराष्ट्रीय विद्वज्जन बहुत दिनों से कर रहे हैं। कई प्रकाशकों ने उनके “ समग्र ग्रन्थ " प्रकाशित भी किये हैं। पर विद्वानों की राय में वे 'समग्र' नहीं कहे जा सकते; क्योंकि उनके ग्रन्यसागर के बहुत थोड़े ग्रन्थ-रत्न अभी तक मिले हैं। धुलिया (खानदेश) की सत्कार्योत्तेजक सभा ने स्वयं समर्थ के और उनके ( रामदासी ) सम्प्रदाय के सब ग्रन्थ प्रकाशित करने का वीड़ा उठाया है। इस सभा ने अब तक श्रीसमर्थ के ग्रन्थों में से " दासबोध" ( रायल अठ- पेजी आकार के करीब ५०० पृष्ठ ) और “ रामायण " आदि कुछ ग्रन्थ (करीब १००० पृष्ठ ) प्रकाशित किये हैं। इनके सिवा और बहुत से अन्य सभा के पास, प्रकाशित होने के लिए रखे हैं । खोज करने से प्रतिवर्ष कुछ न कुछ नवीन कविता प्राप्त हो जाती है। इससे जान पड़ता है कि श्रीरामदासस्वामी के " समग्र ग्रन्थ " इस समय न तो उप- लब्ध हैं और न प्रकाशित हैं। उपलब्ध ग्रन्थों के नाम नीचे दिये जाते हैं। इनमें कुछ अप्रका- शित ग्रन्थों के नाम भी हैं। १ दासबोध २ रामायण मन के श्लोक ४ चौदा शतक ५ जनस्वभाव गोसावी पंच- समासी ७ जुनाट पुरुष ८ मानसपूजा ९ जुना दासबोध १० पंचीकरणयोग ११ चतुर्थ योग- मान १२ मानपंचक १३ पंचमान १४ रामगीता १५ कृतनिर्वाह १६ चतुःसमासी १७ अक्षर- पदसंग्रह १८ सप्तसमासी १९ रामकृष्णस्तव २० दासबोध, आदि आदि । उपर्युक्त ग्रन्थों के सिवा स्फुट अभंग, स्फुट श्लोक, आरती, भूपाली, विविध पद आदि अनेक स्फुट प्रकरण भी उपलब्ध हैं । इन ग्रन्थों में से कुछ प्रमुख प्रन्यों का परिचय अपने पाठकों को देना आवश्यक है। परन्तु उन प्रमुख ग्रन्थों का थोड़ा भी विवेचन करने से इस चरित-लेख के बहुत बढ़ जाने का भय है। इसलिए समर्थ के ग्रन्थों की आलोचना इस स्थान में करना ठीक नहीं जान पड़ता। इस विषय की विस्तृत चर्चा किसी दूसरे लेख में की जायगी । समर्थ की शिक्षा का रहस्य जानने के लिए उनके “ दासबोध " आदि ग्रन्थों का यथोचित भाव प्रकट करना अत्यन्त आवश्यक है। सिंहावलोकन । श्रीसमर्थ रामदासस्वामी ने अपने अवतार की समाप्ति के पहले, अपने संकल्पित कार्यों की 'सिद्धि के विषय में स्वयं ही अपनी कविता के अनेक "स्फुटप्रकरणों " में उल्लेख किया है उसीको श्रीसमर्थचरित का सिंहावलोकन समझना चाहिए । हमको अपनी स्वतंत्र कल्पना के अनुसार चरित्र का सिंहावलोकन करने की आवश्यकता नहीं है । चाफल के जंगल में मते हुए, या कभो एकान्त में बैठे हुए, शिष्यों के प्रश्न उठाने पर, जव समर्थ को