पृष्ठ:दासबोध.pdf/४४०

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समास ३] काव्य-कला। ! भी लोगों को खल नहीं सकता ॥ १७॥ गोरज्य, (गौवें रखना) वाणिज्य और कृपि से भी अधिक भिक्षा की प्रतिष्टा है । भोली को कभी न छोड़ना चाहिए ॥ १८॥ भिक्षा के समान अन्य वैराग्य नहीं है और वैराग्य के समान अन्य सौभाग्य नहीं है । वैराग्य न होने से, एकदेशीय होने के कारण, अभाग्य बना रहता है ॥ १६ ॥ यह पूछने पर कि “कुछ भिक्षा है ? " यदि कोई बहुत भिक्षा देने लगे तो, अल्पसंतोपी रह कर, सिर्फ एक मुट्टी ले लेना चाहिए ॥ २० ॥ श्रानन्द-पूर्वक भिक्षा माँगना चाहिए । यही निस्पृहता के लक्षण हैं । मधुर वचन से सब को सुख होता है |॥ २१ ॥ ऐसी भिक्षा की यह अल्प स्थिति यथामति बतला दी। भिक्षा समय-समय पानेवाली विपत्ति को वचा देती है ॥ २२ ॥ 1 तीसरा समास-काव्य-कला। ॥ श्रीराम ॥ शब्द-सुमन-मालारूप कविता के सुन्दर सुगन्धित परिमलरूप अर्थ से संतजनरूप भ्रमर-समूह को आनन्द प्राप्त होता है ॥ १ ॥ ऐसी माला अन्तःकरण में गूंथ कर रामचरणों की पूजा करो । ओंकारतंतु अखंडित रखना चाहिए-उसका कभी खंडन न करना चाहिए ॥२॥ परोपकार के लिए कविता करना आवश्यक है। ऐसी कविता के लक्षण बतलाते हैं ॥३॥ पहले ऐसी कविता का अभ्यास बढ़ाना चाहिए कि, जिसके द्वारा भगवद्भक्ति और विरक्ति उत्पन्न हो ॥ ४ ॥ परन्तु आचरण के बिना कोरे शब्दज्ञान को सजन पुरुप कभी पसन्द नहीं करते; अत- एव ( कविता का अभ्यास करने के पहले) अनुताप के द्वारा-करुणाई हृदय से-परमात्मा को प्रसन्न कर लेना चाहिए ॥ ५॥ क्योंकि परमात्मr को प्रसन्नता से ईश्वरीय स्फूर्ति से-जितना कुछ मुख से निकलता है । वही श्लाघनीय है-और उसीको प्रासादिक कह सकते हैं ॥ ६ ॥ लोगों को सम्मति से तीन प्रकार की कविता कही है:-(१) ढीठ (धृष्ट); (२) पाठ; और (३) प्रासादिक । अब इन तीनों का क्रमशः विचार किया जाता है ॥ ७॥ कोई कोई, ढिठाई से, जो कुछ मन में आता है उसी पर बलात् कविता बनाते हैं; उसे 'ढोठ-कविता' कहते हैं ॥८॥ किसी किसीको अनेक काव्य-ग्रन्थों के पढ़ने से बहुत सी कविता पाठ हो