पृष्ठ:दासबोध.pdf/४५०

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] कलियुग का धर्म। ३७१ कोई यदि एकाएक अकेले संसार से लड़ने के लिए तैयार हो तो बहुतों के सामने उस अकेले पुरुष को विजय कैसे मिल सकता है ? ॥ ३१ ॥ बहुतों के सुख में रहना चाहिए; बहुतों के अन्तःकरण में बैठ जाना चाहिए और प्राणिमात्र को उत्तम गुण सिखाते रहना चाहिए ॥३२॥ लोगों को चतुर बताना चाहिए, पतितों को पावन करना चाहिए और सृष्टि में भगवनजन बढ़ाना चाहिए ॥ ३३॥ सातवाँ समास-कलियुग का धर्म । ॥ श्रीराम ॥ नाना वेष और नाना पाश्रम आदि सबों का मूल गृहस्थाश्रम है । इस आश्रम में सब प्रकार के लोग विश्राम पाते हैं ॥ १॥ देव, ऋषि, मुनि, योगी, नाना तापसी, वीतरागी, पितृ श्रादि अधिकारी, अतिथि अभ्या- गत, इत्यादि लब गृहस्थाश्रम में उत्पन्न होते हैं । यद्यपि ये लोग अपना श्राश्रम छोड़ जाते हैं, तथापि कीर्तिरूप से चे गृहस्थ के घर में सदा घूमते रहते हैं ॥२॥३॥ इस कारण गृहस्थाश्रम सब से श्रेष्ठ है; परन्तु स्वधर्म और भूतदया की आवश्यकता है-(अर्थात् ये दो गुण गृहस्थ में अवश्य होना चाहिए, तभी गृहस्थाश्रम की शोभा है)॥४॥ वेदविहित कर्मों का आचरण करना चाहिए और सब से मधुर वचन बोलना चाहिए ॥ ५ ॥ सब प्रकार से उचित बर्ताव करना चाहिए; सब काम शास्त्रानुकूल करना चाहिए; और भक्तिमार्ग से चलना चाहिए ॥ ६॥ जो पुरश्चरणी और कायाक्लेशी है, दृव्रती और परम उद्योगी है और जिसके लिए जगदीश को छोड़ कर और कोई बड़ा नहीं है ॥ ७ ॥ जो काया, वाचा, जीव और प्राण से भगवान् के लिए कंष्ट करता है और मन से भजन- मार्ग में दृढ़ होता है ॥८॥ वही सच्चा भगवद्भक्त है वह विशेष करके भीतर से विरक्त होता है और संसार की चिन्ता छोड़ कर, ईश्वर के लिए, मुक्त बन जाता है ॥ ६॥ वास्तव में जिसमें भीतर से वैराग्य है वही महा भाग्यशाली है । आसत्ति के समान और अभाग्य नहीं है ॥ १० ॥ बहुत से राजा लोग राज्य छोड़ कर भगवान् के लिए इधर उधर घूमते रहे और भूमंडल में कीर्तिरूप से पावन हुए ॥ ११ ॥ ऐसे ही (उपर्युक्त ) योगीश्वर अनुभवी होते हैं और अपने सदुपदेश से बे सम्पूर्ण मनुष्यों को पवित्र करते हैं ॥ १२ ॥ उन उदासीन वृत्तिवाले आत्म- .