पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६३

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३८४ दासबोध। [ दशक १५ अस्तु । शान बहुत दुर्लभ है; यह अलभ्य लाभ पुण्य से होता है। परन्तु विचारवान् पुरुषों के लिए सब कुछ सुलभ है ॥१२॥ मालूम होने- वाला विचार बतलाते नहीं बनता; बहुत से विघ्न आते हैं और उपाय करने से बहुत विघ्न उपस्थित होते हैं ॥ १३ ॥ परन्तु जो तीक्ष्ण कार्य- कर्ता है वह क्षणभर भी व्यर्थ नहीं जाने देता। ऐसा चतुर, तार्किक और विचक्षण पुरुष सब को मान्य होता है॥१४॥ उसे नाना प्रकार के बहुत से चुटकुले कंठाग्र होते हैं, उन्हें वह लोगों के सामने कहने लगता है और अपने सामर्थ्य के बल से नीति-मार्ग को स्वच्छ और प्रशस्त कर देता है ॥ १५॥ वह प्रबोधशशि के अनन्त मार्ग जानता है; सब के अन्तःकरण की बात जानता है । इस लिये उसके निरूपण को सब लोग रुचि से सुनते हैं ॥ १६ ॥ अनुभवयुक्त वचनों से सारे मतमतान्तर सपाट कर देता है; लोकरीति की परवा न करते हुए लोगों का मन अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है ॥ १७ ॥ प्रसंगानुसार नीतिपूर्णः परन्तु प्रभाव- शाली वचन कहता है; और उदास वृत्ति के अभिमान में उठ कर चल देता है!॥१८॥अनुभव की बातें बतला कर चला जाता है, इस कारण पीछे से लोगों को उसले मिलने की तीव्र इच्छा होती है और वे नाना मार्गछोड़ कर उसीके शरण में जाते हैं ॥१६॥ पर वह कहीं मिलता ही नहीं है, किसी स्थल में देख ही नहीं पड़ता । वेष देखने से हीन दीन के समान दिखता है ! ॥२०॥ भिखारी कासा स्वरूप करके गुप्तरूप से बहुत कुछ करता है! अतएव उस पुरुप का यश-कीर्ति और प्रताप असीम बढ़ता है ॥ २१ ॥ ठौर ठौर में भजन बढ़ाता है और स्वयं वहां से चला जाता है । मत्सर- युक्त मतों का गड़बड़ नहीं होने देता ॥ २२॥ दुर्गम स्थलों में-(पहाड़ी गुफा-कन्दरों में)-जाकर रहता है-वहां उसे कोई नहीं देखता और वहीं सें वह सब की सदा चिन्ता रखता है-(अर्थात् वहीं रह कर लोगों के उद्धार का प्रयत्न करता है) ॥ २३ ॥ अवघड़ स्थल में, जहां लोगों का दर्शन कठिन है, सावधानी से रहता है। जगत् के लोग उसके पास ढूँढ़ते हुए आते हैं ॥ २४ ॥ परन्तु वहां किसीकी नहीं चलती-वहां अणुमात्र भी किसीका अनुमान नहीं चलता-वह संघशक्ति बढ़ा कर लोगों को 'राजकारण' (राजकीय विषयों) में लगाता है ॥२५॥ वे लोग फिर और लोगों को अपने समुदाय में मिलाते हैं। इस प्रकार अमर्यादित समुदाय वढ़ता है। और गुप्तरूप से सारे भूमण्डल में उस निपृह की सत्ता फैल जाती है ॥२६॥ जगह जगह में उसके अनेक संघ बन जाते हैं, मनुष्यमात्र उसकी ओर आकर्षित हो पाते हैं और इस प्रकार चारो ओर परमार्थ-बुद्धि का