पृष्ठ:दासबोध.pdf/४६४

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समास ३] शान की श्रेष्ठता। ३८५ खूब प्रचार होता है ॥ २७ ॥ ठौर ठौर में (भक्तों का समुदाय एकत्र करके ) उपासना बढ़ाता है और अपने अनुभव से प्राणिमात्र का उद्धार करता है ॥ २८ ॥ इस प्रकार वह बहुत सी युक्तियां जानता है। उसके । द्वारा दूसरे लोग चतुर बनते हैं और जगह जगह प्राणिमात्र को अनुभव प्राप्त होता है ॥ २६ ॥ इस प्रकार जो अपनी कीर्ति संसार में कर जाता है उसीका जन्म लेना सार्थक है । 'दास कहता है कि, यह विषय स्वाभाविक ही संक्षेप से बतला दिया ॥ ३०॥

तीसरा समास-ज्ञान की श्रेष्ठता। ॥ श्रीराम ॥ मूलमाया से लेकर जो सारा पसारा अनर्गल रूप से फैला हुआ है- वृह पंचभूतात्मक है। उसमें जो साक्षित्व का तंतु लगा है वह भी तत्व- रूप (पंचभूतात्मक ) है ॥ १ ॥ ऊंचे सिंहासन पर राजा विराजमान है और दुतर्फा उसके मुलाहिब गण, या फौज के लोग, इँटे हुए है इसका विचार अपने मन में समझो ॥२॥ देहमात्र अस्थिमांस के हैं-वैसे ही राजा का भी देह अस्थिमांस ही का है । अर्थात् मूलमाया से लेकर यह सृष्टि लव पंचभूतात्मक ही हैं ॥ ३ ॥ राजा की सत्ता से सब चलता है; परन्तु हैं सब पंचभूत ही, अन्तर केवल इतना ही है कि, मूलमाया में ज्ञातृत्वशचि अधिक है ॥ ४॥ विवेक से बहुत व्यापक होने के कारण ही अवतारी कहलाते हैं । चक्रवर्ती मनु इत्यादि इसी कारण अवतारी कहलाये ॥५॥ जिसमें जितनी अधिक ज्ञातृत्वशक्ति है उसमें उतनी ही अधिक सदेवता है । ज्ञातृत्वशक्ति की न्यूनता ही के कारण तो लोग निर्देव या अभागी होते हैं ॥ ६ ॥ जो उद्यम रोजगार करते हैं, धके चपेटे सहते हैं वही प्राणी देखते देखते भाग्यवान् बनते हैं ॥ ७ ॥ ऐसा यह आज सरासर हो रहा है; पर (दुख की वात है) कि, मूर्ख लोगों को १ यह पद्य पहले पद्य का दृष्टान्त है । जैसे दोनों ओर फौज ( या मुसाहिब लोग) और बीच में ऊंचे सिंहासन पर राजा वैठता है उसी प्रकार जगद्रूपी फौज का पसारा फैला हुआ है और बीच में साक्षी या ज्ञातृत्वशक्ति राजा के समान विराजती है। २ जिस प्रकार फौज और राजा दोनों के शरीर अस्थिमांस के हैं उसी प्रकार सारा जगत् और साक्षी ये सय तत्वरूप हैं।