पृष्ठ:दासबोध.pdf/४७१

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३१२ दासबोध। [ दशक १५ उसीको भगवंत जानना चाहिए। वहां उपासना का अन्त हो जाता है ॥ ३१ ॥ 'कर्म ', ' उपासना' और 'ज्ञान' का त्रिकांड वेद में कहा है। पर परब्रह्म के तई ज्ञान का विज्ञान हो जाता है-(या यो कहिये कि ज्ञान का भी लय हो जाता है) ॥ ३२ ॥ छठवाँ समास-विशिष्ट चातुर्य । ॥ श्रीराम ।। पीत, अर्थात् दीपक, से कृष्ण, अर्थात् काजल, उत्पन्न हुआ है और वहीं काजल अक्षरों के रूप में सम्पूर्ण भूमंडल पर फैला हुआ है। उसके बिना ज्ञान होना असम्भव है ॥ १॥ देखने में तो काजल स्वल्प- लक्षण, युक्त जान पड़ता है; पर वास्तव में उसमें सब कुछ है-अधम और उत्तम गुण उसी में रहते हैं ॥२॥ महीसुत (पृथ्वी से पैदा होनेवाला सेठा या किलक) निकाल कर उसकी कलम बना कर बीच.से चीरते हैं। दोनों से, (कलम और काजल मिल कर ) काम चलता है ॥ ३॥ श्वेत-अश्वेत (श्वेत काग़ज, अश्वेत किलक की कलम ) की भेट होने ले और बीच में कृष्ण (काजल की स्याही) के मिलने से इस लोक की सार्थकता होती है ॥४॥ इसका विचार करने से मूर्ख भी चतुर होते हैं । तत्काल प्रतीति आती है और परलोक का साक्षात्कार होता है ॥५॥ जो परब्रह्म सब को मान्य है उसीको लोग सामान्य समझ कर उसमें वे अनन्य नहीं होते ॥ ६ ॥ उत्तम, मध्यम, कनिष्ठ ये तीन प्रकार की हस्तरेखाएं और ललाट की अदृष्ट रेखाएं होती हैं, परन्तु इन चारों का अनुभव एक नहीं हो सकता ॥७॥ जो लोग चौदा पीढ़ियों का पवाड़ा गाते बैठते हैं उन्हें हम क्या कहें ? पागल या चतुर ? सुननेवाले को इस बात का विचार करना चाहिए कि, हम से कुछ होता है या नहीं ॥८॥ जब यह बात प्रत्यक्ष मालूम है कि, सारी रेखाएं मिटाई जा सकती हैं तब फिर भाग्य के भरोसे क्यों रहना चाहिए? १ “ एको विष्णुमहद्भूतम् " ऐसा कहा है । उपासना ( अर्थात् द्वैत रख कर भगव- द्भजन ) यहीं तक है । महद्भूत के उस तरफ द्वैत नहीं रहता-वहां अनन्य हो जाना पड़ता है । २ काजल की स्याही बन कर उसीसे वेद, शास्त्र और पुराण आदि लिखे गये हैं, जिनके द्वारा सब को ज्ञान प्राप्त होता है। ३लिख पढ़ कर विद्वान् होने से इहलोक सार्थक होता है।