पृष्ठ:दासबोध.pdf/४७३

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३६४ दासबोध: [ दशक १५ घूमना या ज्ञान प्राप्त करना, कुछ भी नहीं होता ॥ २५॥ सावधानी के साथ सब कुछ जानना चाहिए, सब प्रकार की खबरें पहले ही लेते रहना चाहिए और जहां जाते बने वहां विवेक-पूर्वक जाना चाहिए ॥ २६ ॥ नाना प्रकार के चुटकले मालुम होने से मनुष्य सब का मन प्रसन्न कर सकता है । और यदि वे चुटकले दूसरे को लिख दे तो फिर क्या कहना है ? फिर तो लोगों पर उसका असीम परोपकार हो! ॥ २७ ॥ जैसा जिसको चाहिए वैसा उसको देने से पुरुष सर्वमान्य और श्रेष्ट होता है ॥ २८ ॥ जो भूमंडल में सर्वमान्य है उसे सामान्य पुरुष न समझो-उस पुरुप के पास कितने ही लोग, अनन्य होकर, रहते हैं- सर्वमान्य पुरुष लोकसंग्रह अच्छा कर सकता है ॥ २६ ॥ ऐसे चातुर्य के लक्षण हैं, चातुर्य से दिग्विजय करनेवाले पुरुष के पास क्या कमी रह सकती है ? जहाँ जाता है वहीं उसके लिए सब कुछ है ! ॥ ३०॥ सातवाँ समास-अधोर्च-लक्षण । ॥ श्रीराम ॥ जो नाना विकारों का मूल है वही मूलमाया है, वह सूक्ष्मरूप से अचंचल में ( परब्रह्म में) चंचलरूप रहती है ॥१॥ मूलमाया ज्ञातृत्व- रूप है-वह परब्रह्म का प्रथम स्फुरण है-(वह संकल्परूप है)-इसीको पड्गुणेश्वर भगवान जानना चाहिए ॥२॥ इसीको प्रकृति-पुरुष, शिव- शक्ति और अर्द्धनारी-नटेश्वर कहते हैं; पर वह सारी जगज्ज्योति ही इन सब का मूल है ॥ ३॥ संकल्प का जो चलन है वही वायु (माया) का लक्षण है । वायु में त्रिगुण और पंचभूत हैं ॥ ४ ॥ चाहे जिस बेल को देखिये उसका मूल गहराई तक चला जाता है और पत्र, पुष्प तथा फल भी मूल ही में रहते हैं ॥ ५ ॥ इसके अतिरिक्त और भी नाना प्रकार के रंग, आकार, विकार, तरंग, स्वाद, इत्यादि भीतर मूल ही में रहते हैं ॥ ६ ॥ वही मूल पहले फोड़ कर देखने से उसमें कुछ भी नहीं मालूम होता; पर फिर आगे बढ़ते बढ़ते उससे सब कुछ दिखने लगता है ॥७॥ किसी टीले पर जो बेल उगती है वह नीचे की ओर जोर से बढ़ती है और फिर भूतल पर छैल जाती है ॥ ८ ॥ बस, यही हाल मूलमाया का जानो; अनुभवद्वारा यह सत्य बात जानना चाहिए कि, पंचभूत और त्रिगुण मूलमाया में पहले ही से ॥ ॥ वेल बराबर छैलती जाती है,