पृष्ठ:दासबोध.pdf/४७४

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" अधोल-लक्षण। - नाता चिकारों से शोभती है और उन विकारों से अन्य विकार भी स्वृत्व बढ़ते जाते हैं ॥ १० ॥ नाना शाखाणं फूटती हैं, नाना झाड़ियां बढ़ती हैं; और पृथ्वी पर अनन्त बेलें इसी तरह बढ़ती जाती हैं ॥ ११॥ कितने ती फल गल पड़ते हैं. तुरंत ही दूसरे लगते है। इसी प्रकार सदा होते और जाते हैं ॥१२॥ कोई बले ही मुख जाती है. फिर वहीं दूसरी उगती हैं- इस प्रकार न जाने कितनी बेलें आई और गई! ॥१३॥ पत्त करते है और लगते हैं। फलफूलों का भी ऐसा ही हाल होता है-इन फल- सलों और पत्नों में नाना प्रकार के जीव भी बने रहते हैं ॥ १४ ॥ कभी कभी नो सारी बेल ही सूख जाती है और मूल से फिर उगती है-इसी प्रकार यह सब विचार प्रत्यक्ष अनुभव से जान लेना चाहिए ॥ १५ ॥ -मूल जब खोद कर निकाल डाला जाता है-प्रत्ययशान से जब निर्मल किया जाता है तब सब प्रकार का बढ़ना रुक जाता है ॥ १६ ॥ मूल (श्रादि में) वीज रहता है, अन्त में भी बीज रहता है और बीच में जलरूप बीज रहता है-इसी प्रकार यह सब स्वाभाविक ही फैला हुश्रा है ॥ २७ ॥ यह सब बीजसृष्टि, (अर्थात् वीज से उत्पन्न हुना फलफूल पत्र प्रादि सारा पसारा,) चे सब बातें प्रकट करती हैं जो मूल में हैं। बाद को, जिसका जो अंश होता है वह उसमें स्वाभाविक ही लय हो जाता है ॥९॥ जाता है, आता है, फिर जाता है-इस प्रकार प्रत्या- वृत्ति करता है। परन्तु जो श्रात्मशानी है उसे यह प्रत्यावृत्ति का कष्ट नहीं होता ॥ १६॥ यद्यपि ऐसा कहते हैं कि, उसे कष्ट नहीं होता तो भी उसे कुछ न कुछ जानना ही पड़ता है। आत्मा यद्यपि अपने हृदय में ही है; पर वह सव को कहां मालूम हो सकता है ? ॥२०॥ उसी (आत्मा ही) के द्वारा कार्य करते हैं; पर उसे नहीं जानते । वह दिखता ही नहीं, तव फिर विचारे लोग क्या करें। ॥ २१ ॥ विषयभोग भी उसीके द्वारा होता है, उसके बिना कुछ भी नहीं हो सकता । वास्तव में स्यूल को छोड़ कर सूक्ष्म में प्रवेश करना चाहिए ॥ २२ ॥ अपना और जगत् का अन्तःकरण एक ही है। सिर्फ शरीरभेद के विकार और और है ॥ २३ ॥ एक उँगली की वेदना दूसरी उँगली को नहीं मालूम होती, यही हाल हाथ पैर ग्रादि अवयवों का भी है॥२४॥ जब एक ही शरीर का एक अवयव दूसरे अवयव की पीड़ा नहीं जानता तब फिर दूसरे की क्या जाने ? श्रतएव, दूसरे का अन्तःकरण-जान नहीं पड़ता ॥ २५ ॥ एक ही जल से. सकल वनस्पतियां होती हैं, पर उनमे नाना प्रकार के भेद दिखते हैं। जितनी टूट जाती हैं उतनी ही सूखती हैं, बाकी सब डहडही बनी रहती