पृष्ठ:दासबोध.pdf/४७९

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४०० दासबोध। [ दशक १५ प्रकार ज्यों ज्यों सब का शरीर दिन दिन बड़ा होता जाता है त्यो त्यो कुछ कुछ विचार सूझने लगता है ॥८॥ जैसे फल में वीज आता है उसी तरह मनुष्य के देखते सुनते सब कुछ समझ में आने लगता है ॥ ६॥ जल से बीज अँकुराते हैं, जल न होने से नष्ट हो जाते हैं। मिट्टी और जल एक जगह होने से काम चलता है ॥ १०॥ दोनों में बीज होने । से भीग कर सहज ही में अंकुर निकल जाता है। बढ़ते बढ़ते फिर आगे और भी श्रानन्द मिलता है ॥ ११ ॥ इधर नीचे मूल दौड़ते हैं, उधर चोटी छैल रही है । मूल और चोटी दोनों बीज से होते हैं ॥ १२ ॥ मूल पाताल की ओर चलते हैं, चोटियां अंतराल की ओर दौड़ती हैं। इसी तरह नाना प्रकार के पत्र, पुष्प और फलों से वृक्ष लद जाते हैं ॥ १३ ॥ फलों के जनक ( कारण ) फूल है। फूलों के जनक पत्ते हैं और पत्तों की पैदा करनेवाली पेड़ियां हैं॥१४॥ पेड़ियों के जनक बारीक मूल है, मूलों का जनक उदक है और उदक सूख जाने पर पृथ्वी रह जाती है ! ॥ १५ ॥ यही अनुभव है । अतएव, पृथ्वी सव की जननी है, पृथ्वी का जनक 'पापोनारायण ' की मूर्ति है ॥ १६ ॥ उसका बाप अग्निदेव है, अग्नि का वाप घायुदेव है, वायुदेव का बाप स्वाभाविक ही अंतरात्मा है ॥१७॥ इस प्रकार सबों का जनक अंतरात्मा है, उसे जो नहीं जानता वह दुरात्मा है-अर्थात् श्रात्मा से वह दूर रहता है ॥ १८ ॥ (ऐसा पुरुष ) पास रहते हुए भी श्रात्मा को भूला रहता है, अनुभव नहीं प्राप्त करता । अन्तरात्मा ही के कारण आता है और योही चला जाता है ॥ १६॥ इस लिए सव का जनक जो परमात्मा है उससे अनन्यभाव रखने पर फिर यह प्रकृति का स्वभाव बदलने लगता है ॥२०॥ (स्वभाव बदलने पर) अपना व्यासंग करता है, ध्यानभंग कभी नहीं होता और बोलने चालने में व्यंग्य (insintation) नहीं आने देता ॥ २१ ॥ जो कुछ पिता ने निर्माण किया है उसे देखना चाहिए। क्या क्या पिता ने बनाया है और कितना देखें ? ॥ २२ ॥ जिस पुरुष में वह परम पिता (अंतरात्मा) प्रका- शित हो जाता है वही भाग्यवान है । जिसमें अल्प प्रकाशित होता है वह अल्प भाग्यवान् है ॥२३ ॥ उस नारायण का, मन में ध्यान रख कर, अखंड स्मरण करना चाहिए । इतना करने पर, फिर, लक्ष्मी उसके पास से कहां जायगी? ॥ २४ ॥ नारायण विश्व में व्याप्त है-उसकी पूजा करते रहना चाहिए । अर्थात् सब को सन्तुष्ट करना चाहिए-सब को संतुष्ट रखना मानो नारायण का सन्तुष्ट रखना है ॥ २५॥ जब हम उपा- सना का विचार करते हैं तब जान पड़ता है कि, वह विश्वपालिनी है।