पृष्ठ:दासबोध.pdf/४८५

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दासबोध। [ दशक १६ और शीत प्रकाश चन्द्र का है, उपणत्व न रहने पर देहपात हो जाता है ॥ १० ॥ इस कारण सूर्य विना सहसा काम नहीं चलता, श्राप लोग विचक्षण श्रोता है-सोच देखो ॥ ११ ॥ हरि और हर के अनेक अवतारों तथा शिवशक्ति की अनंत व्यक्तियों के पहले भी सूर्य था और अब भी है ॥ १२ ॥ जितने संसार में श्राते हैं सब सूर्य के नीचे वर्ताव करते हैं और अंत में सूर्य के भागे ही देह त्याग करके चल जाते हैं ॥ १३॥ चन्द्र सूर्य के बहुत पीछे हुया है, क्षीरसागर से मय कर निकाला गया है। चौदह रत्नों में से यह भी एक है-लक्ष्मी का बन्धु है ॥ १४ ॥ यह सब छोटे बड़े जानते हैं कि, यह भास्कर विश्वचन है। इस कारण दिवाकर श्रेष्ठों से भी श्रेष्ठ है ॥ १५ ॥ समर्थ (ईश्वर) ने सूर्य को लोकोपकार के लिए अपार नसमार्गक्रमण करने और इसी तरह रोज आने जाने की आशा दी है ॥ १६॥ दिन न रहने पर अंधकार हो जाता है, किसीको सारासार नहीं जान पड़ता; दिन के बिना चोरों का और उल्लुओं का काम चलता रहता है ॥ १७ ॥ सूर्य के धागे और दूसरा कौन बराबरी के लिए लाया जाय ? यह तेजोराशि अवश्य उपमारहित है ॥१८॥ यह सूर्य रघुनाथ का पूर्वज होने के कारण हमारा सब का भी यही पूर्वज है-इसकी महिमा अगाध है-उसे मानवी वाचा क्या वर्णन करे ? ॥ १६॥ रघुनाथ-चंश में पूर्वापर एक से भी एक बड़े हो गये । यह विचार मुझ मतिमंद को कैसे मालूम हो ? ॥ २०॥ रघुनाथ के समुदाय में मेरा अन्तःकरण फँसा हुआ है, इस लिए उसका महत्व वर्णन करने में मैं वाग्दुर्बल, या असमर्थ हूं ॥ २१ ॥ सूर्य को नमस्कार करने से सारे दोपों का परिहार हो जाता है और निरन्तर सूर्यदर्शन करने से स्फूर्ति वढ़ती है ॥ २२॥ तीसरा समास-पृथ्वी-स्तुति । ॥ श्रीराम ॥ इस वसुमती को धन्य है, धन्य है। इसकी महिमा कहां तक गायें ? प्राणिमात्र इसीके आधार से रहते हैं ॥ १॥ अंतरिक्ष में जो जीव रहते हैं वे भी पृथ्वी ही के कारण से रहते हैं क्योंकि जड़ देह न होने से जीव कैसे रह सकता है ? (और जड़ता पृथ्वी का लक्षण है ) ॥२॥ पृथ्वी को लोग जलाते हैं, भूनते हैं, टोचते हैं, जोतते हैं, छीलते हैं,