पृष्ठ:दासबोध.pdf/४८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४०७ समास ३] पृथ्वी-स्तुति। खोदते हैं और उस पर मलमूत्र तथा वमन छोड़ते हैं ॥ ३॥ सड़े-गले और जर्जर पदार्थों के लिए पृथ्वी को छोड़ कर और कहां सहारा है ? देहान्तकाल में शरीर भी उन्ली पर पड़ता है॥ ४॥ बुरा भला, जो

  • सब के लिए पृथ्वी को छोड़ कर और कहीं सहारा नहीं है। नाना

प्रकार की धातु और द्रव्य भी पृथ्वी दी के पेट में रहते हैं ॥ ५ ॥ इस पृथ्वी पर ही रह कर प्राणी एक दूसरे का संहार करते हैं-चे भूमि को छोड़ और जा कहां सकते हैं ? ॥ ६॥ गढ़, कोट, पुर, पट्टन, नाना देश प्रादि स्थान पर्यटन करने से मालम होते हैं। देव, दानव और मानव सत्र पृथ्वी ही पर रहते है ॥ ७ ॥ नाना रत, होरे, पारस, नाना धातु और द्रव्य पृथ्वी बिना गुप्त या प्रगट नहीं हो सकते ॥ ८॥ मेरु, मंदार हिमाचल, आदि नाना अष्ट-कुल-अचल और पक्षी, मच्छ तथा सर्प श्रादि जीव भूमंडल ही में रहते है ॥६॥ नाना समुद्रों के उस पार, जहां चारो और आवर्णोदक घेरे हुए हैं, भूमंडल की अद्भुत पहाड़ियां फटी हुई है ॥ १० ॥ उनसे अपार छोटे बड़े विवर हैं, जहां निविड़ अंधकार छाया हुआ है ॥ ११ ॥ श्रावर्णोदक का पाराचार कौन जान सकता है ? अद्भुत और बड़े अनन्त जलचर उसमें भरे पड़े हैं ॥ १२ ॥ उस पानी को पवन का आधार है-घद्द निविड़, ईंटा हुआ और घना जीवन (पानी) किसी और से फूट नहीं सकता ॥ १३॥ कठिनत्वरूप अहंकार उस प्रभंजन का आधार है, इस प्रकार के विचित्र भूगोल का पार कौन पा सकता है ? ॥ १४ ॥ नाना पदार्थों की खानियां, धातु-रत्नों का जमाव, कल्पतरु, चिन्तामणि, अमृतकुंड, नाना द्वीप, नाना खंड बहुत से नगर और ऊसर हैं जहां कि, नाना प्रकार के जीव निराले ही रहते हैं ॥ १५ ॥ १६ ॥ मेरु के आसपास पहाड़ियां फटी हुई है, अद्भुत अँधेरा छाया हुआ है और नाना प्रकार के घने वृक्ष लगे हुए हैं ॥ १७ ॥ उसी के पास लोकालोक पर्वत है, जहां सूर्य का चाक फिरता रहता है। चन्द्राद्रि, द्रोणाद्रि और मैनाक नाम के महागिरि भी वहीं हैं ॥ १८ ॥ अनेक देशों के नाना पापाणभेद, नाना प्रकार के मृत्तिकासेद, नाना गुप्तं निधान और विभूतियां तथा नाना खानियां सब इसी पृथ्वी पर है ॥१६॥ वसुंधरा बहुरत्नमयी है, पृथ्वी के समान और दूसरा कौन पदार्थ है ? यह चारों ओर अमर्याद फैली हुई है ॥ २० ॥ ऐसा कौन प्राणी है जो सारी धरती घूम सके? धरनी के साथ और किसीकी तुलना नहीं की जा सकती ॥ २१ ॥ अनेक देशों की नाना बेलें, नाना फसलें, जो अनुपम हैं, सब इसी पृथ्वी पर होती हैं ॥ २२ ॥ स्वर्ग, मृत्यु और पाताल ये तीन