पृष्ठ:दासबोध.pdf/४८७

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४०८ दासबोध । [दशक १६ अद्भुत लोक रचे गये हैं। पाताल लोक में बड़े बड़े नाग रहते हैं ॥ २३ ॥ यह विशाल धरनी ही नाना पेलों और बीजों की खानि है । उस कर्ता की करनी बड़ी विचित्र है ! ॥ २४ ॥ मनोहर गढ़, कोट, अनेक नगर, पुर, पत्तन, आदि सव स्थानों में जगदीश्वर रहता है ॥ २५॥ बड़े बड़े वली होगये और उन्होंने पृथ्वी पर बहुत क्रोध किया; पर वे अपनी सामर्थ्य के द्वारा पृथ्वी से अलग नहीं रह सके ॥ २६ ॥ यह पृथ्वी बहुत विस्तृत है, अनेक जाति के जीच इस पर रहते हैं । इस भूमंडल पर अव- तारों के नाना भेद है ॥ २७ ॥ इस समय भी यह वात प्रत्यक्ष देख पड़ती अनुमान करने की आवश्यकता नहीं है, नाना प्रकार के जीवन पृथ्वी ही के आधार से रहते हैं ॥ २८ ॥ कितने ही लोग ऐसा कहते हैं कि, भूमि मेरी है; पर अन्त में वे स्वयं ही मर जाते हैं । परन्तु पृथ्वी अनन्त काल से जैसी की तैसी ही बनी हुई है ॥ २६ ॥ ऐसी पृथ्वी की महिमा है; इसके साथ दूसरी कौनसी उपमा दें ? ब्रह्मादि देवताओं से लेकर हम मनुष्यों तक, सब को इसका श्राश्रय है ॥ ३० ॥ चौथा समास-जल-स्तुति । ॥ श्रीराम ।। श्रव, जो सबों का जन्मस्थान तथा जो सब जीवों का जीवन है और जिसे 'आपोनारायण' कहते हैं उसका निरूपण करते हैं ॥१॥ पृथ्वी को श्नावर्णोदक का आधार है। सात समुद्रों का समुद्र-जल और नाना सेघों का मेघोदक पृथ्वी में बहता रहता है ॥२॥ अनेक देशों में अनेक नदियां वह कर समुद्र से जा मिलती हैं। कोई छोटी हैं, कोई बड़ी है, कोई पवित्र हैं; उनकी महिमा अगाध है ॥३॥ नदियां पहाड़ों से निकल कर नाना दरी खोरियों में बहती हुई " हहर हहर" या " खड़ खड़" शब्द करती हुई बहुत दूर तक चली जाती हैं ॥ ४ ॥ कुआं, बावली, झील' बड़े बड़े तालाब, आदि अनेक जलस्थान नाना देशों में हैं। उनमें निर्मलं नीर उमड़ रहा है ॥ ५ ॥ फौवारे ऊपर की ओर जोर से उठते हैं, अनेक नाले बहते हैं, और झरनों से पानी झरता है ॥ ६॥ कहीं कुंओं से पानी झरता है, कहीं पर्वतों को फोड़ कर पानी बहता . है-इस प्रकारं भूमंडल में उदक के अनेक भेद हैं ॥ ७ ॥ अनेक पहाड़ों से