पृष्ठ:दासबोध.pdf/४८९

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दासबोध। [ दशक १६. हैं, उन्हें न किसीने देखा है न सुना है। कहीं कहीं विद्युल्लता के गिरने से झरने बन गये है ! ॥ २७ ॥ पृथ्वीतल पर पानी भरा पृथ्वी के भीतर पानी खेलता है और पृथ्वी के ऊपर भी (वाप्परूप में) बहुत सा पानी फैला हुआ है ॥ २८ ॥ स्वर्ग मृत्यु और पाताल तीनों में एक नदी है और मेघभोदक आकाश से बरसा करता है ॥२६॥ पृथ्वी का सूल जीवन है, जीवन का मूल अग्नि है और अग्नि का मूल पवन है । वह बड़ों से भी बड़ा है ॥ ३० ॥ उससे भी बड़ा परमेश्वर है । वहीं से महद्भूतों का विचार उत्पन्न हुआ है । उससे भी बड़ा-सब से बड़ा-परात्पर परब्रह्म । पाँचवाँ समास-अग्नि-स्तुति। || श्रीराम ।। इस वैश्वानर (अग्नि ) को धन्य है; यह रघुनाथ का श्वसुर है, विश्व- व्यापक और विश्वम्भर है, जानकी का पिता है ॥१॥ इसीके मुख से भगवान् भोजन करता है, यह ऋपियों का फलदाता है, यह अंधकार, शीत और रोग का हरनेवाला तथा जगत् के लोगों का भरणपोषण करनेवाला है ॥२॥ लोगों में नाना वर्ण और नाना भेद हैं; पर अग्नि जीवमात्र के लिए अभेद है (एक समान है ) और ब्रह्मादिकों के लिए भी वह अभेद तथा परम शुद्ध है ॥ ३॥ अग्नि से सृष्टि चलती है, अग्नि ही के कारण लोग अघाते हैं और अग्नि ही से सब छोटे बड़े जीते हैं ॥ ४॥ अग्नि से लोगों के रहने के लिये भूमंडल बना है और जगह जगह दीप दीपिकाएं और नाना प्रकार की ज्वालाएं प्रकट हुई हैं ॥५॥ पेट में जो जठराग्नि रहती है उससे लोगों को भूख लगती है। अग्नि ही से भोजन में रुचि आती है ॥ ६ ॥ अग्नि सर्व अंग में व्यापक है, उष्णता से सब जीते हैं; उष्णता न रहने से सब लोग मर जाते हैं ॥७॥ यह तो सभी लोग जानते हैं कि अग्नि सन्द हो जाने के कारण प्राणी मर जाता है ॥ ८ ॥ अग्नि का बल होने से तत्काल शत्रु को जीत लेते हैं। जब तक अग्नि है तब तक जीवन है ॥ ॥ नाना प्रकार के रस अग्नि ही के द्वारा निर्माण किये जाते हैं कि, जिनसे पलमात्र में महारोगी भी आरोग्य होते हैं ॥ १० ॥ सूर्य सब से बड़ा है; पर अग्नि-प्रकाश की महिमा सूर्य से भी अधिक है । देखो न, रात में लोग अग्नि ही से सहा-