पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समास ] वायु-स्तुति। ४१३ वायु ही के योग ले रहता है ! ॥ १७ ॥ वराह ने अपने दांत पर जो पृथ्वी को धारण कर लिया सो वह शक्ति भी बायु ही के कारण उसे मिली ॥ १८ ॥ ब्रह्मा, विष्णु, महेश, और स्वयं जगदीश्वर भी, वायु के ही स्वरूप में है-यह विचार विवेकी जानते हैं ॥ १६ ॥ तेंतीस कोटि देवता, अासी सहन ऋपि और असंख्यों सिड्योगी आदि सब वायु ले ही हैं ॥ २० ॥ नव कोटि कात्यायिनी, छप्पन कोटि चामुंडा और साढ़े तीन कोटि भूतखानि-सब वायु के रूप में हैं ॥ २१ ॥ भूत, दैवत और नाना शक्तियों की व्यक्कियां वायुरूप हैं, और भूमंडल के न जाने कितने, नाना प्रकार के, जीव भी वायु से ही हैं ॥२२॥ वायु पिंड और ब्रह्मांड में पूरित है-वह ब्रह्मांड के बाहर भी फैला हुआ है। यह समर्थ वायु सब ठौर परिपूर्ण है ॥ २३ ॥ यह पवन बड़ा समर्थ है; हनुमन्त इसीका पुत्र है कि, जिसने अपना तनमन रघुनाथ के स्मरण में लगा दिया ॥२४॥ हनुमान वायु का प्रसिद्ध पुत्र है, पिता-पुत्र में भेद नहीं है, दोनों (वायु और हनुमान ) का पुरुपार्थ एक ही सा है ॥ २५ ॥ हनुमान को प्राण- नाय कहते हैं, परन्तु वायु ही के कारण वह समर्थ है। उसके न रहने पर सब व्यर्थ हो जाता है ॥ २६ ॥ प्राचीन काल में जब हनुमान की मृत्यु आई तब वायु ही रुद्ध हो गया, अतएव सारे देवताओं की प्राणान्त- अवस्था आ गई ॥ २७ ॥ जब सब देवों ने मिलकर बायु का स्तवन किया तब वायु ने प्रसन्न होकर सब को बचाया ॥ २६ ॥ इस लिए महा प्रतापी हनुमान ईश्वरी अवतार है। इसका पुरुषार्थ देवगण देखते ही रहते हैं ॥ २६ ॥ हनुमान ने, देवों को अचानक कारागृह में देख कर, लंका के आसपास संहार मचा कर, राक्षसों की दुर्दशा कर डाली॥३०॥ देवों का बदला राक्षसों से लिया; राक्षसों को जड़ से नाश किया । उस पुच्छकेतु की लीला देख कर आश्चर्य होता है ॥ ३१ ॥ रावण जहां सिंहासन पर बैठा था वहां जाकर उसकी निन्दा की। लंका जाते समय उसे समुद्र तक नहीं रोक सका ॥ ३२॥ वह देवों को आधार सा जान पड़ा, उसके महान् पराक्रम को जब देवों ने देखा तब उन्होंने रघुनाथ की स्तुति की ॥ ३३ ॥ उसने सारे दैत्यों का संहार किया, तत्काल देवों का उद्धार किया। जिससे तीनों लोक के प्राणिमात्र सुखी हुए ॥ ३४ ॥