पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९३

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४१४ दासबोध। [ दशक १६ सातवाँ समास-महद्भूत-निरूपण। ॥ श्रीराम ।। पृथ्वी का मूल जीवन है, जीवन का मूल अग्नि है और अग्नि का भूल पवन है। इन सब का वर्णन पीछे किया गया ॥१॥ अव, पवन का मूल जो अन्तरात्मा है, और जो सब में अत्यन्त चंचल है, उसका वर्णन सुनो ॥२॥ वह आते श्राते दिख नहीं पड़ता, स्थिर होकर वैठता नहीं और उसके रूप का अनुमान वेदश्रुति भी नहीं कर सकते ॥ ३॥ ब्रह्म में पहले पहल जो स्फुरण होता है वही अन्तरात्मा का लक्षण है वही जग- दीश्वर है, उससे त्रिगुण हैं ॥ ४॥ त्रिगुण से पंचभूत हुए और (पीछे से वे सृष्टि के रूप में विस्तृत या) प्रकट हुए। उन भूतों का स्वरूप विवेक से पहचानना चाहिए ॥ ५॥ उनमें मुख्य आकाश है जो कि चारो भूतों से श्रेष्ठ है । इसीके प्रकाश से सब कुछ प्रकाशित है ॥६॥ विष्णु ही एक महद्भूत है। यही भूतों का रहस्य है; पर इसका अनुभव करना चाहिए ॥ ७॥ ये सब भूत विस्तारपूर्वक बतला दिये; इन भूतों में जो व्यापक है वह विचारपूर्वक देखने से अनुभव में आता है ॥८॥ आत्मा की चपलता के आगे वायु विचारा क्या है ? आत्मा की चपलता प्रत्यक्ष विचार करके देखना चाहिए ॥ ६॥ आत्मा के बिना काम नहीं चलता, श्रात्मा न दिखता है और न मिलता है। वह गुप्तरूप से नाना विचार देख डालता है ॥ १०॥ वह पिंड और ब्रह्मांड में व्याप्त है, नाना प्रकार के शरीरों में विलसता है, वह जगत् के सब प्राणियों के अन्तःकरण में है, यह बात विवेकी लोग जानते हैं ॥ ११ ॥ यह तो कल्पान्त में भी नहीं हो सकता कि आत्मा के विना देह बर्ताव करता रहे। (आत्मा के ही योग से) अष्टधा प्रकृति की व्यक्तियां रूप को प्राप्त हुई हैं ॥ १२ ॥ आदि. से लेकर अन्त तक, सब कुछ श्रात्मा ही करता है। आत्मा के बाद निर्विकारी परब्रह्म है ॥ १३ ॥ आत्मा शरीर में बर्तता है, इन्द्रियगण को चेष्टा देता है और देहरूप उपाधि के योग से, सुख दुख के नाना भोग भोगता है ॥ १४ ॥ सप्तकंचुक यह ब्रह्मांड है, उसमें फिर सप्तकंचुक पिंड है, उस पिंड में आत्मा को दृढ़ विवेक से पहचानना चाहिए ॥१५॥ आत्मा, शब्द सुन कर समझता है, समझ कर प्रत्युत्तर देता है और त्वचा-द्वारा कठिन, नर्म, शीत, उपरण जानता ॥१६॥ नेत्रों में भर कर वह पदार्थ देखता है, नाना पदार्थों की परीक्षा करता है और मन में ऊंच