पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९५

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४१६ दासबोध। [ दशक १६ के जीव को 'जीव' और नियों के जीव को 'जीवी' कहने का झगड़ा पैदा होता है; पर इस सूक्ष्म कुटक को समझना चाहिए ॥ ३६ ॥ स्थूल के योग से भेद जान पड़ता है; पर वास्तव में सूक्ष्म में सारा अभेद ही है-यह कथन निश्चित और अनुभव युक्त है ॥ ३७॥ ऐसा कभी नहीं हुआ कि, स्त्रीने स्त्री के साथ संभोग किया हो, स्त्री को अन्त:- करण में पुरुप ही का ध्यान रहता है ॥ ३८ ॥ स्त्री को पुरुप और पुरुप को स्त्री-ऐसा यह सम्बन्ध है; और सूक्ष्म में भी है ॥ ३६॥ पुरुप की इच्छा . में प्रकृति और प्रकृति की इच्छा में पुरुष रहता है, इसी कारण उन्हें 'प्रकृतिपुरुष' कहते हैं ॥ ४० ॥ पिंड से ब्रह्मांड का विचार करना चाहिए, प्रतीति प्राप्त करना चाहिए। यदि न समझ पड़े तो वारवार विचार करके समझना चाहिए ॥४१॥ द्वैतेच्छा आदि ही से थी, तभी तो वह भूमंडल में आई । भूमंडल और आदिस्थान (मूल माया) का मिलान करके देखना चाहिए ॥ ४२ ॥ अस्तु; यह एक बड़े महत्व का काम हो गया कि, जो श्रोताओं का आक्षेप मिट गया और प्रकृतिपुरुप का रूप निश्चित हो गया ! ॥ ४३ ॥ आठवाँ समास-आत्माराम-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ जिसकी कृपा से मति की स्फूर्ति होती है उस मंगलमूर्ति गणपति को नमन करता हूं । लोग आत्मा का ही भजन और स्तवन करते हैं। (आत्मा से भी मति की स्फूर्ति होती है और गणपति से भी होती है, इस लिए गणपति ही आत्मा है) ॥१॥ जो अन्तःकरण में प्रकाश देती है और जो नाना प्रकार की विद्याओं का पूर्णरूप से विवरण करती है उस वागीश्वरी वैखरी (वाणी, सरस्वती) को नमस्कार करता हूं ॥२॥ राम नाम सर्वोत्तम है । इसीके योग से शंकर का कष्ट दूर हुआ और उन्हें विश्राम मिला ॥ ३ ॥ नाम की बड़ी महिमा है, उस परात्पर, परमे- श्वर, त्रैलोक्यधर्ती के नाम का रूप उत्तरोत्तर बढ़ता ही जाता है ॥ ४॥ श्रात्माराम चारो ओर भरा हुआ है-उसीके योग से लोग इधर उधर फिरते हैं। बिना श्रात्मा के देह-पात हो जाता है और मृत्यु हो जाती है ॥ ५॥ वह जीवात्मा, शिवात्मा, परमात्मा, जगदात्मा, विश्वात्मा, गुप्तात्मा, आत्मा, अंतरात्मा और सूक्ष्मात्मा, सब देव-दानव-मानव-जा-