पृष्ठ:दासबोध.pdf/४९७

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दासबोध। [दशक १६ अनंत हैं; सब देह के अनुसार स्वाद लेते हैं। वास्तव में आत्मा अभेद है; पर यह भेद को भी धारण करता है ॥ २३ ॥ पुरुष को.स्त्री चाहिए और स्त्री को पुरुप चाहिए। यह कभी नहीं हो सकता कि, स्त्री को स्त्री की आवश्यकता हो ॥ २४ ॥ आत्मा के तई यह गड़बड़ नहीं है कि, पुरुप के आत्मा को 'जीव' और स्त्री के आत्मा को 'जीवी' कहते हो । जहां विषय-सुख का गड़बड़ होता है वहीं भेद होता है ॥ २५ ॥ जिस प्राणी के लिए जो आहार है वह प्राणी उसीको चाहता है। पशु के आहार में मनुष्य अप्रीति दिखलाता है ॥ २६॥ जिस प्रकार आहार और देह आदि के अनेक गुप्त तथा प्रगट भेद हैं उसी प्रकार आनन्द भी अलग अलग हैं ॥ २७ ॥ सिंधु और भूगर्भ के जलों में भी शरीर हैं । श्रावणर्णादक के जलचर बहुत बड़े हैं ॥ २८ ॥ सूक्ष्म दृष्टि से विचार करने पर जान पड़ता है कि, शरीर का तो अन्त मिलता ही नहीं, फिर अन्तरात्मा किस प्रकार अनुमान में आ सकता है ? ॥२६॥ देह और आत्मा के योग का विचार करने से कुछ न कुछ अनुमान में श्रा जाता है; पर स्थूल और सूक्ष्म का गड़बड़ एक प्रकार का गोलकधंधा है ॥ ३०॥ यह गोलकधंधा सुर- झाने के लिए नाना प्रकार के निरूपण किये गये हैं-अन्तरात्मा ने कृपा करके अनेक मुखों से बतलाया है ॥ ३१ ॥ नववाँ समास-उपासना-निरूपण । ॥ श्रीराम ।। पृथ्वी में नाना प्रकार के लोग हैं । उनके लिए नाना प्रकार की उपास- नाएं भी हैं । ठौर ठौर में, अपनी अपनी भावना के अनुसार, लोग भजन में लगे हैं ॥ १ ॥ अपने देवता को भजते हैं, नाना स्तुतियां और स्तवन करते हैं । परन्तु जिसे देखो वही उपासना को निर्गुण बतलाता है ॥२॥ इसका अभिप्राय सुझे बतलाइये । (उत्तर:-) अरे, यह स्तुति का स्वभाव है ॥३॥ निर्गुण का अर्थ है बहुगुणी और वहुगुणी अन्तरात्मा है । यह विलकुल सच है कि, सब उसके अंश हैं । प्रतीति कर लो ॥४॥ सारे लोगों का मान करने से वह एक अन्तरात्मा को प्राप्त होता है; पर अधि- कार देख कर मान करना चाहिए ॥ ५॥ श्रोता कहता है कि, यह ठीक नहीं है । प्रत्यक्ष अनुभव तो यह है कि, केवल मूल में पानी सींचने से