पृष्ठ:दासबोध.pdf/५००

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समास १०] निशुण और पञ्चभूत। फिर उकाल की रचना हुई ॥ १३ ॥ उसमें भी प्रातःकाल, मध्यान्ह- कात, सायंकाल, शीतकाल और उष्णकाल निर्माण किये गये ॥१४॥ इस तरह एक के पीछे एक बनाया जाता है, क्रम से सब के नियम बांधे जाते हैं, जिससे प्राणिमात्र का जीवन स्थिर होता है ॥ १५ ॥ नाना प्रकार के जब कठिन रोग होने लगे तब ोपधियां बनाई गई (यह सब तो हुना) पर सृष्टि का विवरण भी मालूम होना चाहिए ॥ १६ ॥ देह का मूल रचा और रेत है (जो एक प्रकार का जल है ) उसी जल के दांत बनते हैं। इसी प्रकार भूमंडल में नाना रत्नों की रचना भी होती है ॥ १७ ॥ सव का मूल पानी जानो, पानी से सारा धंधा चलता है पानी बिना हरि गोविन्द'-अर्थात् सव शून्य-जानो; उसके बिना प्राणी ही कां से होंगे? ॥ १८ ॥ मुक्ताफल, शुक्र के समान चमकीले हीरे, माणिक और इन्द्रनील, इत्यादि सब जल से होते हैं॥१६॥किसकी महिमा वतला ? सारा मिश्रण ही हो गया है। अलग अलग किस प्रकार करें ? ॥ २० ॥ परन्तु मन में विवेक आने के लिए कुछ थोड़ा बतलाया है। जगत् में जो विवेकी पुरुष हैं वे सब समझते हैं ॥ २१ ॥ सब कुछ समझ लेना असम्भव है, शास्त्रों-शास्त्रों का मेल नहीं मिलता और अनुमान से कुछ भी निश्चय नहीं होता ॥ २२ ॥ भगवान् के गुण अगाध है, शेप भी अपनी वाचा से वर्णन नहीं कर सकता। परमात्मा के बिना वेदविधि भी कच्ची ही जानो ॥ २३ ॥ आत्माराम सब को पालता है, वह सारा त्रैलोक्य सँभालता है। उस एक के विना सब मिट्टी में मिल जाते हैं ॥२४॥ जहां आत्माराम नहीं है वहां कुछ नहीं रह सकता, ऐसे स्थान में त्रैलोक्य के सारे प्राणी मृततुल्य हैं ॥ २५ ॥ श्रात्मा न रहने से मरण हो जाता है, आत्मा बिना कोई कैसे जी सकता है ? अन्तःकरण में अच्छी तरह विवेक करना चाहिए ॥ २६ ॥ विवेकपूर्वक समझना भी आत्मा के विना नहीं हो सकता! सब को जगदीश का भजन करना चाहिए ॥ २७ ॥ उपासना के प्रगट होने से ही यह विचार मालूम हुआ है, इस लिए परमात्मा की उपासना करना चाहिए ॥ २८ ॥ उपासना का बड़ा भारी श्राश्रय है, उपासना विना काम नहीं चल सकता-चाहे जितना उपाय किया जाय; पर सफलता नहीं हो सकती ॥ २६॥ जिसे समर्थ का श्राश्रय नहीं होता उसे चाहे जो कूट डालता है ! इस लिए उठते-बैठते सदा भजन करते रहना चाहिए ॥ ३० ॥ भजन, साधन और अभ्यास से परलोक मिलता है। 'दास कहता है कि, यह विश्वास रखना चाहिए ॥३१॥