समास १] अन्तरात्मा की सेवा। भरा पूरा हो जाता है। पर वह सुख लदानहीं रहता; सुख अशाश्वत है। (वह सुख से अलिप्त है) ॥ १६ ॥ अशाश्वत का शिरोमणि, जिसकी करणी अगाध है, यदि दिखता नहीं तो क्या हुआ; धनी वास्तव में उसीको कहते हैं ॥ १७ ॥ उसकी ओर लक्ष्य रखने से अभेदत्व प्राता है उससे विमुख रहने से खेद होता है ॥ १८ ॥ वह सबों का मूल है; पर दिखता नहीं, भव्य और भारी है; पर भासता नहीं और एक पल भर भी एक जगह नहीं रहता ॥ १६॥ ऐसा वह परमात्मा अगाध है, उसकी महिमा कौन जान सकता है ? हे सांत्तम! तेरी लीला तू ही जानता है! ॥ २०॥ जिस पुरुप में नित्यानित्य-विवेक है, संसार में उसीका पाना सार्थक है। ऐसा पुरुप इहलोक और परलोक दोनों साधता है ॥ २१ ॥ मननशील लोगों के पास परमात्मा अखंड रीति से रात दिन बना रहता है | विचार करने से जान पड़ता है कि, ऐसे पुरुषों का पूर्वसंचित पुण्य अनुपम है ॥ २२ ॥ (ऐसे पुरुष से परमात्मा का) अखंड योग रहता है, इसी लिए वे योगी कहलाते हैं। (परमात्मा का जिससे) योग नहीं रहता वह वियोगी (दुखी) है; पर जो वियोगी है वह भी (परमात्मा के) योग के बल से योगी हो जाता है ॥ २३ ॥ भलों की महिमा ऐसी है कि, वे लोगों को सन्मार्ग में लगाते हैं । तैरनेवाला मौजूद हो तो उसे चाहिए कि, वह डूबनेवाले को डूबने न दे ॥ २४ ॥ भूमंडल में ऐसे बहुत घोड़े पुरुष है जो सूक्ष्म और स्थूल तत्वों का विवरण तथा पिंड-ब्रह्मांड का ज्ञान करके अनुभव प्राप्त करते हो ॥ २५॥ वेदान्त के पंचीकरण का अखंड विवरण करना चाहिए और महावाक्य ले अन्तःकरण का रहस्य देखना चाहिए ॥२६॥ पृथ्वी में जो विवेकी पुरुष हैं उनकी संगति धन्य है। उनके उपदेश का श्रवण करके प्राणिमात्र गति पाते हैं ॥ २७ ॥ सत्संग और सच्छास्त्र-श्रवण का जहां अखंड विवरण होता रहता है वहीं सत्संग और परोपकार के उत्तम गुण मिलते हैं ॥ २८ ॥ जो सत्की- र्तिवान् पुरुष हैं वही परमेश्वर के अंश हैं, धर्मस्थापना का उत्साह उन्हीं- में पाया जाता है ॥ २६ ॥ सारासार-विचार श्रेष्ट है, उससे जगत् का उद्धार होता है । संगत्याग से अनेक पुरुष अनन्य हो चुके हैं ॥ ३०॥