पृष्ठ:दासबोध.pdf/५०५

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४२६ दासबोध । [दशक १७ फैले हैं ॥ ३३ ॥ यहां जो यह शिवशक्ति का रूप प्रत्यक्ष बतलाया उसे श्रोताओं को मन में लाना चाहिए । विना विचार किये कही हुई बात व्यर्थ जानना चाहिए ॥ ३४ ॥ तीसरा समास-अध्यात्म-श्रवण । श्रीराम ॥ ठहरो, ठहरो! सुनो, सुनो! पहले ही अन्य मत छोड़ दो। जो कुछ बतलावे सो सावधानी से सुनो! ॥१॥ सब श्रवणों में मुख्य यह अध्यात्म-निरूपण का श्रवण है । इस लिए इस विषय का विचार सुचित्त अन्तःकरण से करना चाहिए ॥ २॥ श्रवण-मनन का विचार करने पर निदिध्यास से, निश्चय करके, मोक्ष का साक्षात्कार होता है-वह उधार नहीं रहता-उधार का नाम ही न लो ॥३॥ नाना रत्नों की परीक्षा करते समय, अथवा (पदार्थों को) तोलते समय, या उत्तम सोना आँच में तचाते समय सावधान रहना चाहिए ॥ ४॥ नाना प्रकार के सिके गिनने में, नाना प्रकार की परीक्षाएं करने में और विवेकी पुरुप से बात-चीत करने में सावधानी रखनी चाहिए ॥ ५॥ जैसे 'लखाहर' (शिवपूजा- विशेष) का धान्य छांट छांट कर चढ़ाने से देवता को मान्य होता है; पर एक तरफ से बुरा-भला सब चढ़ाने से देवता को अमान्य होता है और वह क्षोभ करता है ॥६॥ एकान्त में, जब किसी 'नाजुक कारवार' का विचार होता हो तब, बहुत होशियार रहना चाहिए; पर अध्यात्म- अन्य के विचार में उसले कोटिगुण अधिक सावधान रहना चाहिए ॥ ७॥ कहानियां, कथा, बार्ता, पवाड़े और अनेक बड़े बड़े अचतार- चरित्रों से भी कठिन अध्यात्मविद्या है॥८॥गई हुई बात (कथा) को सुन लेने से क्या होथ आता है ? लोग कहते हैं कि, पुण्य प्राप्त होता है; पर वह कुछ दिखता नहीं! ॥ ६॥ अध्यात्म-निरूपण का यह हाल नहीं है, इसका विचार प्रतीतिपूर्ण है । उसके मालूम होने से सन्देह मिट जाता है ॥ १० ॥ बड़े बड़े होगये, सब अात्मा ही के द्वारा बर्ताव करते रहे; पर ऐसा कौन हुआ (या है ) जो उसकी महिमा बतला सका हो (या बतला सकता हो ) ? ॥११॥ युगानुयुगों से जो अकेला ही तीनों लोकों को चला रहा है उस आत्मा का विचार बार बार करना चाहिए