पृष्ठ:दासबोध.pdf/५०९

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४३० दासबोध । [ दशक १७ निरूपण सुनना चाहिए। ऐसा करने से श्रात्मसाक्षात्कार की पहचान तुरंत मिल जाती है॥३०॥उलटा और सीधा जानना चाहिए, अंधे को पैरों से ही पहचानना चाहिए और व्यर्थ बोलने को वमन-प्राय त्याग करना चाहिए ॥ ३१॥ पाँचवाँ समास-अजपा-निरूपण । ॥ श्रीराम ॥ अजपा-जप की संख्या इक्कीस सहस्त्र छै सौ नियत की गई है। विचार करने से सब कुछ सहज है ॥ १ ॥ सुख और नासिका में प्राण रह कर अखंड आता जाता रहता है। इसका विचार सूक्ष्म दृष्टि से करना चाहिए ॥२॥ पहले तो देखने से मालूम होता है कि, स्वर एक ही है; पर वास्तव में उस स्वर के तीन भेद है:-(१) तार-निषाद; (२) मंद्र-मध्यमः(३) घोर-खर्ज; अब इस घोर से भी सूक्ष्म विचार अजपा का है ॥ ३ ॥ 'स-रि-ग-म-प-ध-नि-इन सारे अक्षरों को कह कर देखो-इन सप्तस्वरों में से किसी एक को मूल मान कर क्रमशः ऊपर को चलो ॥ ४ ॥ परा वाचा के ऊपर और पश्यंती के नीचे-अर्थात् नाभि और हृदय के बीच में-स्वर का जन्मस्थान है; वहीं से उसका ' उल्लेख' (स्फुरण) होता है ॥ ५ ॥ एकान्त में स्वस्थ होकर बैठना चाहिए, वहां यह सब समझ लेना चाहिए- प्रयोग करना चाहिए-प्रभंजन (पवन) को अखंडरूप से खींचना चाहिए और छोड़ना चाहिए ॥ ६ ॥ एकान्त में मौन साध कर बैठना चाहिए, सावधान या सुस्थ होकर देखने से जान पड़ता है कि, ऊपर श्वास खींचते समय 'सो' और बाहर छोड़ते समय 'हं' इस प्रकार निरन्तर " सोहं सोहं " शब्द होता रहता है ॥ ७ ॥ उच्चार के बिना जो शब्द होते हैं उन्हें नैसर्गिक शब्द समझना चाहिए; वे अनुभव में आते हैं। पर उनका नाम कुछ भी नहीं होता ॥ ८॥ उन शब्दों को भी जो छोड़ बैठता है उसे महान् मौनी कहना चाहिए-योगाभ्यास का.सारा ' गड़. बड़ ऐसा ही है ॥ ॥ एकान्त में मौन धारण करके बैठने पर जब यह विचार किया जायगा कि, कौन शब्द हुआ तव अन्तर में 'सोहं' शब्द - का सा भास होता है ॥ १० ॥ श्वास लेते समय 'सो' और छोड़ते समय हं'-इस प्रकार अखंड रीति से “सोहं सोहं" होता रहता है. इसका विचार बहुत विस्तृत है: ॥ ११ ॥ सब देहधारी, प्राणी, स्वेदज और