पृष्ठ:दासबोध.pdf/५१५

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. दासबोध । [ दशक १७ है । उसे 'मध्यमा' वाचा कहते हैं । अक्षर का उच्चार होने पर वैखरी' कहते हैं. ॥ २॥ नाभिस्थान, जहां परा वाचा है, वहीं अन्तःकरण का ठौर है। अव अन्तःकरणपंचक का निश्चय सुनिये:-॥३॥ निर्विकल्प-अवस्था में (अर्थात् शून्याकार वृत्ति होने पर ) जो स्फुरण उठता है जो एक प्रकार का स्मरण रहता है-उसीको अन्तःकरण ' या चेतनाशक्ति जानना चाहिए ॥४॥ अन्तःकरण का लक्षण स्मरण है। इसके बाद जो यह भावना श्राती है कि, 'हो या न हो,' अथवा 'करूं या न करूं' वही मन' है ॥५॥ अर्थात् संकल्प-विकल्प उठना ही मन का धर्म है-यही मन की पहचान है-इसी मन से अनुमान (सन्देह ) उत्पन्न होता है; फिर, अन्त में, जो निश्चय होता है वही 'बुद्धि' का रूप है-अर्थात् निश्चय करना बुद्धि का धर्म है ॥ ६ ॥ करूं ही गा अथवा न करूं गा-इस प्रकार का निश्चय करना ही 'बुद्धि' है-यह वात विवेक से अन्तर में जान लेना चाहिए ॥ ७ ॥ निश्चय की हुई वस्तु का चिन्तन करना 'चित्त' का लक्षण है । इसमें कोई सन्देह नहीं ॥ ८॥ फिर कार्य का यह अभिमान रखना कि, यह कार्य अवश्य करना है, अथवा ऐसे कार्य में प्रवृत्त होना ही। 'अहंकार' है ॥ ६॥ यही 'अन्तःकरणपंचक' है । पाँच वृत्तियां मिलकर एक हैं। कार्यभाग से पाँच प्रकार अलग अलग हो गये हैं ॥१०॥ जैसे पाचों प्राण कार्यभाग से अलग अलग हैं; अन्यथा वायु का रूप तो एक ही है ॥ ११ ॥ साग में 'व्यान, ' नाभि में 'समान, ' कंठ में 'उदान,' शुदा में 'अपान' और मुख तथा नासिका में 'प्राण' रहता है-यह निश्चय जानना चाहिए ॥१२॥ यह 'प्राणपंचक' बतला दिया, अब 'ज्ञानेन्द्रियपंचक' सुनो। श्रोत्र, काल), त्वचा (खाल), चक्षु (आखें), जिह्वा (जीस), नासिका (नाक) ये पाँच ज्ञानेन्द्रियां हैं ॥ १३ ॥ वाचा (वाणी), पाणि (हाथ ), पाद (पैर), शिश्न और गुद में पाँच कर्मेन्द्रियाँ प्रसिद्ध हैं। शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, ये पाँच (पांच ज्ञानेन्द्रियों के ) विषय है ॥ १४ ॥ अन्तः- करणपंचक, प्राणपंचक, ज्ञानेन्द्रियपंचक, कर्मेन्द्रियपंचक और पाँचवां विषयपंचक-इस प्रकार ये पाँच पंचक हैं ॥ १५॥ इस प्रकार ये पच्चीस गुण मिल कर सूक्ष्म देह बनता है, इसका कर्दम भी कहा है। सुनियेः- ॥ १६ ॥ अन्तःकरण, व्यान, श्रवण, वाचा और शब्दविषय, आकाश का रूप है । अब आगे वायु का विस्तार कहा है ॥ १७ ॥ मन, समान, त्वचा, पाणि और स्पर्श, पवन का रूप है। यह सब कोष्टक बनाकर समझ लेना चाहिए ॥ १८ ॥ बुद्धि, उदान, नयन, चरण और रूपविषय, अग्नि का