पृष्ठ:दासबोध.pdf/५१६

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समास ] तनु-चतुष्टय। ४३७ रूप है । यह सब हम संकेत से बतलाते हैं। मन लगाकर विचार करता चाहिए ॥ १६॥ चित्त, अपान, जिला, शिश्न, रसविषय, जल का रूप है। अब आगे पृथ्वी का रूप सावधान होकर सुनो ॥ २०॥ अहंकार, प्राण, प्राण, गुद, गंधविषय, पृथ्वी का रूप है । यह शास्त्रमत से निरूपण किया ॥ २१ ॥ ऐसा यह 'सूक्ष्म देह' है. इसका मनन करने से निस्सन्देह होते हैं। परन्तु जो कोई इसे मन लगाकर समझता है उसीको यह समझ पड़ता है ॥ २२॥ ऐसा यह सूक्ष्म देह बतलाया । अब आगे स्थूल देह का वर्णन किया जाता है। पंचगुणों से आकाश स्थूल देह में किस प्रकार वर्तता है, सो सुनिये ॥ २३ ॥ काम, क्रोध, शोक, मोह, भय, ये पाँच भेद आकाश . ! अव आगे पंचविध वायु बतलाया है ॥ २४ ॥ चलन, चलन, प्रसरण, निरोधन और आकुंचन, ये पाँच लक्षण वायु के हैं ॥ २५ ॥ चधा, तृपा, आलस्य, निद्रा, मैथुन, ये पाँच तेज के गुण हैं। अब आगे आप के लक्षण सुनिये ॥ २६ ॥ वीर्य, रक्षा, लार, मूत्र, स्वेद, ये पाँच श्राप के भेद हैं। अब आगे पृथ्वी के लक्षण बतलाते हैं ॥ २७ ॥ श्रास्थि, मांस, त्वचा, नाड़ी और रोम, ये पाँच पृथ्वी के धर्म है, इस प्रकार 'स्थूल देह' का मर्म कहा है ॥ २८ ॥ पृथ्वी, आप, तेज, वायु, श्राकाश, इन पाँचो के पच्चीस तत्व मिलकर ' स्थूल देह' बनता है ॥ २६ ॥ तीसरा देह 'कारण' अज्ञान है, चौथा देह 'महाकारण' ज्ञान है-इन चारो देहों का निरसन हो जाने पर विज्ञानरूप परब्रह्म रह जाता है - ॥३०॥ विचार से चारो देह अलग करने से मैंपन तत्वों के साथ चला जाता है और इस प्रकार परब्रह्म में अनन्य आत्मनिवेदन हो जाता है ॥३१॥विवेक से प्राणी जन्म-मृत्यु से लुक हो जाता है, नरदेह में महत्कृत्य साध लेता है और भक्तियोग से कृतकृत्य और सार्थक हो जाता है ॥ ३२.॥ यह पंचीकरण का वर्णन हो चुका। इसका विचार वारवार करना चाहिए । पारस के योग से लोहे का सोना हो जाता है ॥३३॥ यह दृष्टान्त ठीक नहीं है। पारसपत्थर पारस नहीं बना सकता; परन्तु साधु की शरण में जाने से स्वयं साधु ही हो जाते हैं। नववाँ समास-तनु-चतुष्टय। ॥ श्रीराम ।। स्थूल, सूक्ष्म, कारण, महाकारण, ये चार देह हैं। जागृति, स्वप्न, सुपुति