पृष्ठ:दासबोध.pdf/५१७

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दासबोध । [ दशक १७ और तुर्या में चार अवस्थाएं हैं ॥ १॥ विश्व, तेजस, प्राज्ञ, प्रत्यगात्मा, ये चार अभिमान हैं और नेत्रस्थान, कंठस्थान, हृदयस्थान और मूर्धा, में चार स्थान हैं ॥ २ ॥ स्थूलभोग, प्रविविक्तभोग, आनन्दभोग, प्रानन्दावभास भोग-ये चार भोग चारों देहों के हैं ॥ ३॥ अकार, उकार, मकार और अर्धमात्रा, ये चार मात्राएं चारों देहों की हैं ॥४॥ तम, रज, सत्व, शुद्ध सत्व, ये चार गुण चारों देहों के हैं ॥ ५॥ क्रियाशक्ति, द्रव्यशक्ति, इच्छा- शक्ति, ज्ञानशकि,-ये चार शक्तियां चारों देहों की है ॥ ६ ॥ ऐसे ये बत्तीस तत्व, सूक्ष्म और स्थूल देहों के मिलकर पचास तत्व, सब मिल कर क्यासी तत्व हुए। इनके सिवा अज्ञान (कारणदेह ) और ज्ञान (महाकारणदेह ) हैं ॥ ७ ॥ इस प्रकार से ये सब तत्व जान कर उन्हें मायिक समझना चाहिए और अपने को साक्षी मान कर इस रीति से उनका निरसन करना चाहिए ॥ ८॥ साक्षी ज्ञान को कहते हैं, ज्ञान से अज्ञान को पहचानना चाहिए और देह के साथ ज्ञानाज्ञान का निरसन कर देना चाहिए ॥ ६॥ ब्रह्मांड में जिन देहों की कल्पना की गई है उन्हें विराट और हिरण्यगर्भ कहते हैं। आत्मज्ञान और विवेक से उनका भी निरसन हो जाता है ॥ १० ॥ आत्मानात्म-विवेक और सारासार-विचार करने से, पंचभूतों की मायिक वार्ता मालूम हो जाती है ॥ ११॥ अस्थि,, मांस, त्वचा, नाड़ी और रोम, ये पाँचो पृथ्वी के गुणधर्म हैं । प्रत्यक्ष अपने शरीर में ही इन सब को खोज कर देख लेना चाहिए ॥१२॥ शुक्र, शोणित, लार, मूत्र और खेद, ये श्राप के पाँच भेद हैं । तत्वों को समझ कर इनको स्पष्ट कर लेना चाहिए ॥ १३ ॥ क्षुधा, तृषा, आलस्य, निद्रा, मैथुन, ये पाँचो तेज के गुण हैं । इन तत्वों का निरूपण बारवार करना चाहिए ॥ १४॥ चलन, चलन, प्रसरण, निरोधन और आकुंचन-में पाँचो गुण वायु के हैं, सो श्रोता लोगों को जान लेना चाहिए ॥ १५ ॥ काम, क्रोध, शोक, मोह और भय, आकाश के गुण हैं। बिना विवरण किये यह कुछ समझ में नहीं आता ॥ १६ ॥ . अस्तु । ऐसा यह स्थूल शरीर पञ्चीस तत्वों का विस्तार है । अब सूक्ष्म देह का विचार बतलावेंगे ॥ १७ ॥ अन्तःकरण, मन, बुद्धि, चित्त, अहं- कार, ये पांच भेद आकाश के हैं । अव आगे सावधान होकर वायु के भेद सुनो ॥ १८॥ व्यान, समान, उदान, प्राण, अपान-ये पाँचो भेद वायु- तत्व के हैं ॥ १६ ॥ श्रोत्र, त्वचा, चक्षु, जिव्हा, घ्राण-ये पाँचो तेज के भेद हैं। अब सावधान होकर आप के भेद सुनो ॥ २० ॥ वाचा, पाणि, पाद, शिश्न, गुद, ये आप के भेद हैं। अब पृथ्वी के भेद बतलाते हैं ॥२१॥