पृष्ठ:दासबोध.pdf/५१८

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समास १०] साधु और मूर्ख । शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, चे पृथ्वी के भेद है। इस प्रकार व पच्चीस तत्व- भेद सूक्ष्मदेह के हैं ।। २२॥ । दसवाँ समास-साधु और मूर्ख । ।। श्रीराम ॥ पृथ्वी के अासपास अवदिक में हाटकेश्वर नामक पाताललिंग की महिमा बहुत बड़ी है । उसे नमस्कार करना चाहिए ॥ १॥ परन्तु वहां जा नहीं सकते, शरीर से उसका दर्शन हो नहीं सकता, इस लिए उस ईश्वर को विवेक से अनुमान में लाना चाहिए ॥२॥ सात समुद्रों का धेरा है, बीच में अत्यन्त विस्तृत पृथ्वी है-उन समुद्रों के पास भूमंडल की पहाड़ियां टूटी है ॥ ३॥ सात समुद्रों को लाँघ कर वहां जाना कैसे सम्भव है ? इस लिए साधुजन को विवेकी होना चाहिए ॥ ४ ॥ जो अपने को न मालूम हो वह ज्ञाता पुरुप से पूछना चाहिए। यह तो हो नहीं सकता कि, मनोवेग के अनुसार शरीर से चलें ॥ ५ ॥ जो चर्म- दृष्टि से न जान पड़े उसे शानदृष्टि से देखना चाहिए और ब्रह्मांड का मनन करके मन में समाधान रखना चाहिए ॥ ६ ॥ बीच में पृथ्वी का पड़दा है, इसी लिए अाकाश और पाताल हैं और यदि यह पड़दा न हो तो (पाताल का नाम मिट जाय और) चारो ओर आकाश ही प्राकाश हो जाय ॥ ७॥ जो स्वाभाविक ही उपाधि-रहित है उसको परब्रह्म कहते हैं उसके तई दृश्यमाया के नाम शून्याकार है-अर्थात् दृश्य वहां नहीं है ॥८॥ दृष्टि से जो दिखता है वह दृश्य है, मन से जो दिखता है वह भास है और मन से परे जो निराभास है उसे विवेकदृष्टि से देखना चाहिए ॥ ६॥ जहां 'दृश्य' और 'भास' के लिए ठौर नहीं है वहां विवेक प्रवेश कर सकता है। परन्तु इस भूमंडल में सूक्ष्म दृष्टिवाले ज्ञाता थोड़े हैं ॥१०॥ वाच्यांश बाचा से बोला जाता है, परन्तु जो न बोला जा सके उसे लक्ष्यांश जानना चाहिए और गुण के ही योग से निर्गुण को अनुभव में लाना चाहिए ॥ ११ ॥ गुणों का नाश है; पर निर्गुण अवि- नाश है। सूक्ष्म के देखने में स्थूल के देखने से विशेषता है ॥ १२ ॥ जो दृष्टि से न देख पड़े उसे सुनकर जानना चाहिए । श्रवण-मनन से सब कुछ मालूम हो जाता है ॥ १३ ॥ अष्टधा प्रकृति के नाना दृश्य पदार्थ हैं, सब मालूम नहीं हो सकते । कोई भी नहीं जान सकता ॥ १४॥ यदि सब