पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२०

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. अठारहवाँ दशक । पहला समास-विविध देवता। ॥ श्रीराम ॥ हे गजवदन ! तुझे नमस्कार करता हूं, तेरी महिमा कोई नहीं जानता । तू सब छोटॉचड़ों को विद्या-चुद्धि देता है ॥ १ ॥ हे माता सर: स्वती ! तुझे नमस्कार करता हूं, चारो वाणी तेरी ही स्फूर्ति हैं। ऐसे पुरुष थोड़े हैं जो तेरा मुख्य स्वरूप जानते हों ॥२॥ हे चतुरानन ! तुझे धन्य है, धन्य है; तूने सृष्टिरचना की है और वेद, शास्त्र, तथा नाना भेद प्रकट किये हैं ॥ ३॥ हे विष्णु ! तुझे धन्य है ! तू पालन करता है और एक अंश से, जान जान कर, सब जीवों को बढ़ाता और उनसे वर्ताव कराता है ॥४॥ हे भोलाशंकर ! तुझको धन्य है, धन्य है! तेरी दया का पार नहीं है, तू सदा रामनाम जपता है ॥ ५॥ हे इन्द्रदेव ! तुझे धन्य है, धन्य है । तू सब देवों का भी देव है । इन्द्रलोक का वैभव कहां तक बतला?॥ ६॥ हे धर्मराज यम ! तुझे धन्य है, धन्य है। तू सब धर्माधर्म को जानता है; और प्राणिमात्र के मर्म का तू पता लगा लेता है ॥ ७ ॥ हे वेंकटेश ! तेरी महिमा अपार है ! भले भले आदमी खड़े होकर तेरे स्थान पर भोजन करते हैं, बड़े-सुगौड़े आदि अनेक पक्वान्नों का स्वाद लेते हैं ॥ ८॥ हे बनशंकरी ! तुझे धन्य है, तू अनेक शाकों का आहार करती है । इस धरती पर तेरे सिवाय और ऐसा कौन है जो चुन चुन कर भोजन करता हो ? ॥ ६॥ हे बलभीम हनुमान ! तुझे धन्य है ! कोरे बड़ों की अनेक मालाएं तू डालता है ! दहीबड़े खाने से सब को आनन्द मिलता है ! ॥ १०॥ हे खंडेरायजी ! तुझे भी धन्य है | तेरा शरीर हलदी से पीला रहता है, तेरे यहां प्याज भरे हुए मुगौड़े (1) खाने के लिए सब लोग तैयार रहते हैं ! ॥ ११ ॥ हे तुलजा भवानी ! तुझे धन्य है, तू भकों पर सदा प्रसन्न रहती है । जगत् में ऐसा कौन है जो तेरे गुणवैभव की गणना करे ? ॥ १२॥ हे पांडुरंग ! तुझे धन्य है, धन्य है ! तेरे यहां अखंड रीति से कथा की धूम मची रहती है। और नाना प्रकार से तानमान रागरंग छाया रहता है ॥ १३ ॥ हे क्षेत्रपाल! तुझे धन्य है ! तूने अनेक लोगों को भक्तिमार्ग में लगाया है । भावपूर्वक तेरी भक्ति करने से फल मिलने में देर नहीं लगती॥१४॥