पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२२

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समास २] ज्ञाता का समागम । ४४३ भाता के पास गीत गाना चाहिए, उसके पास बाध बजाना चाहिए और नाना प्रकार के भालाप उससे सीखने चाहिए ॥६॥ ज्ञाता का सहारा रखना चाहिए, शाता की ओपधि लेना चाहिए और ज्ञाता जो बतलावे वही पथ्य पहले करना चाहिए ॥७॥ ज्ञाता से परीक्षा सीखना चाहिए, शाता के पास कसरत करनी चाहिए और उसके सामने तैरने का अभ्यास करना चाहिए ॥८॥ जैसा झाता कहे वैसा बोलना चाहिए, जैले वह कहे वैसे चलना चाहिए और नाना प्रकार से जैसा वह ध्यान करे वैसा ध्यान धरना चाहिए ॥६ज्ञाता की कथाएं सीखनी चाहिए, ज्ञाता की युतियां समझनी चाहिए और उसीकी प्रत्येक बात का मनन करना चाहिए ॥ १०॥ ज्ञाता के पेंच जानने चाहिए, ज्ञाता की युक्ति समझना चाहिए और जिस प्रकार वह अन्य लोगों को राजी रखे उसी प्रकार स्वयं भी सब को राजी रखना चाहिए ॥ ११ ॥ झाता के प्रसंग जानने चाहिए, ज्ञाता के रंग लेने चाहिए और शाता की स्फूर्ति की तरंगों का अभ्यास करना चाहिए ॥ १२॥ ज्ञाता का उद्योग ग्रहण करना चाहिए, ज्ञाता का तर्क जानना चाहिए और ज्ञाता के बिना बोले ही उसका संकेत समझ लेना चाहिए ॥ १३॥ ज्ञाता की चाणाक्षता (विशिष्ट प्रकार का चातुर्य), ज्ञाता की राजनीति और ज्ञाता का निरू- पण सुनते रहना चाहिए ॥ १४ ॥ ज्ञाता की कविताएं सीखनी चाहिए, गद्य-पद्य पहचानने चाहिए और उसके माधुर्य-वचनों का अन्तःकरण में विचार करना चाहिए ॥ १५ ॥ ज्ञाता के प्रबन्ध देखने चाहिए, और उसके वचनभेदों तथा नाना प्रकार के सम्बादों का अच्छी तरह विचार करना चाहिए ॥ १६ ॥ ज्ञाता की तीक्ष्णता, सहिष्णुता और उदारता समझ लेनी चाहिए ॥१७॥ ज्ञाता की नाना प्रकार की कल्पनाएं, उसकी दूरदर्शिता और विवंचना भी समझ लेनी चाहिए ॥ १८ ॥ झाता के काल-सार्थक की रीति, ज्ञाता का अध्यात्मविवेक और उसके अनेक गुण, सभी ले लेना चाहिए ॥ १६ ॥ ज्ञाता का भक्तिमार्ग, वैराग्ययोग और उसके सारे प्रसंग समझ लेने चाहिए ॥२०॥ ज्ञाता का ज्ञान देखना चाहिए, ज्ञाता का ध्यान सीखना चाहिए और ज्ञाता के सूक्ष्म चिन्ह समझ लेने चाहिए ॥ २१ ॥ ज्ञाता की अलिप्तता, विदेह-लक्षण और ब्रह्म- विवरण समझ लेना चाहिए ॥ २२ ॥ ज्ञाता भी एक अंतरात्मा है, उसकी महिमा कहां तक बतलाई जाय ? उसकी विद्या, कला और गुण की सीमा कौन निश्चित करे ? ॥ २३ ॥ परमेश्वर के गुणानुवाद करके अखंड संवाद करना चाहिए। ऐसा करने से अत्यन्त आनन्द मिलता है