पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२४

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समास ४] नर-देह का महत्व। भी नहीं होता ॥८॥ उसे स्वयं तो कुछ आता नहीं और दूसरों का सिखापन भी नहीं मानता! स्वयं तो पागल है ही; सज्जनों को भी निन्दा करता है॥६॥ भीतर कुछ और है और वाहर कुछ और है, ऐसा जिसका विवेक है, उस पुरुष से परलोक का सार्थक कैसे हो सकता है ? ॥ १०॥ ऐसे पुरुष की गृहस्थी नाश हो जाती है और फिर वह मन में पछताता है, इस लिए विवेक का अभ्यास करना चाहिए ॥ ११ ॥ मन एकाग्र करके, दृढ़ता के साथ, साधन करना चाहिए और यत्न करने में जरा भी आलस न श्राने देना चाहिए ॥१२॥ सारे अवगुण छोड़ देना चाहिए, उत्तम गुणों का अभ्यास करना चाहिए और गहन अाँवाले प्रबन्ध पाठ करते रहना चाहिए ॥ १३ ॥ पदप्रबन्ध, श्लोकप्रबन्ध, नाना प्रकार की कविताएं, मुद्रा, छन्द पाठ होने चाहिए; क्योंकि नाना प्रसंगों के ज्ञान ही से आनन्द होता है ॥ १४ ॥ यह बात समझ लेनी चाहिए कि, किस प्रसंग पर क्या कहना उचित है । व्यर्थ के लिए योही क्यों कष्ट उठाना चाहिए ? ॥ १५ ॥ दूसरे का मन जानना चाहिए, रुचि देख कर (कोई बात ) कहना चाहिए। जो याद आ जावे वही गा बैठना मूर्खता है ॥ १६॥ जिसकी जैसी उपासना हो उसीके अनुसार गाना चाहिए, भूलना न चाहिए । और रागज्ञान तथा तालज्ञान का अभ्यास करते रहना चाहिए ॥ १७ ॥ साहित्य, संगीत के साथ, प्रसंगानुसार, कथा की श्रूम मचा देना चाहिए और श्रवणमनन से अर्थान्तर (गुह्यार्थ) निका- लते रहना चाहिए ॥ १८ ॥ खूब पाठ होना चाहिए, सदा सर्वदा उधरते रहना चाहिए और बतलाई हुई बात याद रखना चाहिए ॥ १६ ॥ अखंड रीति से एकान्त का सेवन करना चाहिए, सारे ग्रन्थ थथोल डालना चाहिए और जिस अर्थ पर अपना मन जम जाय वही लेना चाहिए ॥२०॥ चौथा समास-नर-देह का महत्व । ॥ श्रीराम ॥ देह से ही गणेशपूजन और शारदावंदन होता है। देह से ही गुरु, सजन, संत और श्रोताओं का काम चलता है ॥१॥ देह से ही कविता रची जाती है, अध्ययन होता है और उसीके द्वारा नाना विद्याओं का अभ्यास करते हैं ॥२॥ ग्रन्थलेखन, नाना प्रकार की लिपियों की पह-