पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२५

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दासबोध। [ दशक १८ चान, नाना पदार्थों की खोज देह से ही होती है ॥३॥ महाज्ञानी, सिद्ध, साधु, ऋषि, मुनि, श्रादि देह से ही होते हैं और देह से ही प्राणी तीर्थाटन करते हैं ॥ ४ ॥ देह से ही श्रवण और मनन में पुरुप लगता है और देह से ही मुख्य परमात्मा की प्राप्ति होती है ॥ ५॥ कर्ममार्ग, उपा- सनामार्ग और ज्ञानमार्ग आदि सब देह से ही होते हैं ॥ ६॥ योगी, वीत- रागी, तापसी, आदि लोग नाना प्रकार के प्रयास देह के ही द्वारा करते हैं और देह के ही कारण से श्रात्मा प्रकट होता है ॥ ७॥ इहलोक, पर- लोक, आदि सब देह से ही बनते हैं-देहविना सव निरर्थक है ॥८॥ पुरश्चरण, अनुष्ठान, गोरांजन, धूम्रपान, शीतोष्ण, पंचाग्निसाधन देह से ही होते हैं ॥ ६॥ पुण्यात्मा, पापात्मा, स्वेच्छाचारी, पवित्र देह ले ही होते हैं ॥ १०॥ अवतारी और वेपधारी भी देह से ही होते हैं। नाना प्रकार के बलवे और पाखंड देह ही से होते हैं ॥ ११॥ विषय-भोग और सर्चत्याग देह ही से होते हैं और देह ही के कारण नाना रोग होते और जाते हैं ॥ १२ ॥ नव प्रकार की भक्ति, चार प्रकार की मुक्ति, और नाना प्रकार की युक्ति और नाना मत, सब देह ही से होते हैं ॥ १३ ॥ देह से ही दानधर्म होते हैं, देह से ही नाना रहस्य प्रकट होते हैं और लोग कहते हैं कि, देह ही के कारण पूर्वकर्म का फल मिलता है ॥ १४॥ नाना स्वार्थ, नाना अर्थ-च्यर्थ और धन्यता देह ही के कारण से होती है ॥ १५ ॥ नाना कलाएं, न्यूनाधिकता और भक्तिमार्ग का प्रेम देह से ही होता है ॥ १६ ॥ नाना प्रकार का सन्मार्गसाधन देह से ही होता है, देह से ही बन्धन टूटता है और आत्मनिवेदन होकर मोक्ष मिलता है ॥१७॥ देह सब में उत्तम है, देह में आत्माराम रहता है, पुरुषोत्तम सब घरों में है-विवेकी जानते हैं ॥ १८ ॥ देह से ही नाना प्रकार की कीर्ति मिलती है, अथवा नाना प्रकार की अपकीर्ति होती है और देह ही के कारण से अवतार-मालिकाएं होती जाती हैं ॥ १६॥ नाना प्रकार के भ्रम-सम्भ्रम देह से ही होते हैं और देह ही के द्वारा लोग उत्तमोत्तम पद भोगते हैं ॥ २० ॥ देह ही से सब कुछ है-देह के बिना कुछ नहीं है। देह के विना श्रात्मा का होना न होना बराबर है ॥ २१ ॥ देह परलोक की नौका है, नाना गुणों का आगार है । नाना रत्नों का विचार देह ही के द्वारा होता है ॥ २२ ॥ देह ही से गायनकला और संगीतकला जानी जाती हैं। देह ही के योग से अंतर्कला प्राप्त हो जाती है ॥ २३ ॥ देह ब्रह्मांड का फल है, वह बहुत दुर्लभ है; परन्तु इसको शुद्ध बोध देना चाहिए ॥ २४ ॥ देह ही के द्वारा छोटे बड़े सब लोग अपना अपना व्यापार करते हैं । इसी