पृष्ठ:दासबोध.pdf/५२९

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लोगों का स्वभाव । बद गये हैं, बहुत दिनों से उनका उपद्रव मचा है, इस लिए अखंड रीति ले सावधान रहना चाहिए ॥ १२ ॥ वह ईश्वर सर्वकर्ता है। उसने जिसे झापना लिया है उस पुरुप का विचार बिरला ही जान सकता है ॥ १३ ॥ न्याय, नीति, विवेक, विचार, नाना प्रकार के प्रसंग और दूसरे का मन परखना ईश्वर का देना है ॥ १४ ॥ महायन, सावधानी, समय श्रा पड़ने पर धैर्य धरना, अद्भुत ही कार्य करना, ईश्वर को देनगी है ॥ १५ ॥ यश, कीर्ति, प्रताप, महिमा, असीम उत्तम गुण और अनुपमता ईश्वर को देनगी है ॥ १६ ॥ देव-ब्राह्मण पर श्रद्धा रखना, आचार-विचार से चलना, कितने ही लोगों को आश्रय देना और हाथ से सदा परोकार होना, ईश्वर- दत्त बातें हैं ॥ १७ ॥ इहलोक, परलोक सम्हालना, अखंड सावधान रहना, बहुत लोगों की सहना ईश्वर की देनगी है ॥ १८ ॥ परमात्मा.का पन्न ग्रहण करना, ब्राह्मण की चिन्ता रखना और बहुत लोगों को पालना ईश्वर के देने से होता है ॥१६॥ धर्मस्थापना करनेवाले नर ईश्वर के अवतार हैं। ऐसे मनुष्य हुए हैं और आगे होंगे। देना ईश्वर का है ॥ २०॥ उत्तम गुणग्राहकता, तीक्ष्ण तर्क और विवेक, धर्मवासना और पुण्यलोकता ईश्वर का देना है ॥ २१ ॥ सदा तजवीजें सोचते रहना चाहिए और विवेक से चलना चाहिए। यही सव गुणों का सार है इससे इहलोक, परलोक दोनों सधते हैं ॥ २२ ॥ सातवाँ समास-लोगों का स्वभाव । ॥ श्रीराम ॥ लोगों का स्वभाव लालची होता है, प्रारम्भ ही में कहते हैं "देव"- अर्थात् उनकी ऐसी वासना रहती है कि, हमें कुछ दो! ॥१॥ विना भक्ति किये ही (ईश्वर की) प्रसन्नता की इच्छा रखते हैं। जैसे स्वामी की कुछ भी सेवा न करके (वेतन) मागते हों ॥ २॥ कष्ट विना फलं नहीं मिलता; कष्ट विना राज्य नहीं मिलता और (प्रयत्न ) किये विना जगत् में कोई साध्य नहीं पूर्ण होता ॥ ३॥ यह तो प्रत्यक्ष है कि, आलस से कार्यनाश होता है; परन्तु तिस पर भी हीन लोग परिश्रम करने से मुंह चुराते हैं ॥४॥जो पहले परिश्रम का दुःख सहते हैं वे ही फिर सुख का फल भोगते है और जो पहले आलस में आकर बैठे रहते हैं उन्हें आगे