पृष्ठ:दासबोध.pdf/५३०

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दासबोध। [दशक १८ दुःख उठाना पड़ता है ॥ ५॥ चाहे इहलोक (स्वार्थ) हो, चाहे परलोक (परमार्थ) हो; प्रयत्न दोनों के लिए करना पड़ता है। दूरदर्शिता की बड़ी आवश्यकता है ॥ ६ ॥ जो मनुष्य, जितना कमाते हैं उतना सव खा डालते हैं, वे कठिन प्रसंग या पड़ने पर भूखों मर जाते हैं । इस लिए जो दूरदर्शिता से वर्तते हैं वही सुखी रहते हैं ॥ ७ ॥ इहलोक के लिए धन और परलोक के लिए परमार्थ संचित किये विना सव व्यर्थ है। जिन मनुष्यों ने ऐसा नहीं किया वे जीते हुए मृततुल्य हैं ॥८॥ एक ही बार मरने से छूट नहीं सकता, किन्तु अनेक जन्मों की यातना भोगनी पड़ती है, इस प्रकार जो अपने को वारबार मारता है- वचाता नहीं-वह आत्महत्यारा है ॥६॥ प्रति जन्म में आत्मघात होता । उन जन्मों की गणना कौन करे ? इस प्रकार जन्म-मृत्यु कब बन्द हो सकती है? ॥ १०॥ यह बात तो प्राणिमात्र कहते हैं कि, ईश्वर सब कुछ करता है। परन्तु उसकी भेट का लाभ बहुत कम (विरले ही को) होता है ॥ ११॥ विवेक के लाभ से परमात्मा मिलता है और विवेक विवेकी पुरुषों को मिलता है ॥ १२ ॥ परमात्मा एक है; पर वह वनाता अनेक है, उस अनेक (दृश्य ) को एक (परमात्मा) न कहना चाहिए ॥ १३ ॥ देव का कर्तृत्व और देव, दोनों का अभिप्राय मालूम होना चाहिए। कितने ही लोग विना जाने ही व्यर्थ वक बक किया करते हैं ॥ १४ ॥ मूर्खता से व्यर्थ बोलते हैं, और कुछ नहीं; ऐसे लोग चतुरता दिखाने के लिए बोलते हैं; परन्तु वास्तव में सच्चे चातुर्य के प्रकट करने की जरूरत ही नहीं पड़ती-वह स्वयं प्रकाश हो जाता है ॥ १५ ॥ जो बहुत कष्ट सह कर उपाय करता है वह भाग्यवान होकर सुख पाता है और अभागी लोग बोलते ही रहते हैं॥१६॥ अभागी का अभाग्य-लक्षण विचक्षण पुरुष समझ जाते हैं, परन्तु भले आदमी के उत्तम लक्षण अभागी को नहीं मालूम होते ॥ १७ ॥ उसकी कुवुद्धि बढ़ जाती है उसे होश कहां रहता है ? उसे कुबुद्धि ही सुबुद्धि- सी जान पड़ती है ॥ १८ ॥ बेहोश मनुष्य की कौन सी बात सच मानी जाय? उसके पास विचार के नाम पर तो शून्य है ॥ १६॥ विचार से इहलोक परलोक दोनों वनते हैं, जन्म सार्थक होता है, इस लिए विचार से नित्य-अनित्य का विवेक करना चाहिए ॥२०॥