पृष्ठ:दासबोध.pdf/५३३

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समास १] निद्रा-निरूपण । एड़ते हैं ब्रह्मवीणा फोड़ डालते हैं-उमरू के टुकड़े टुकड़े होते हैं, तब भी उन्हें होश नहीं पाता! ॥५॥ कोई टेंक कर बैठते हैं और वहीं घर बजाने लगते हैं, कोई खूब उताने होकर पलर जाते हैं ॥ ६ ॥ कोई । घुसमुड़ा जाते हैं, कोई करवट लेकर सोते हैं और कोई चारो ओर चक की तरह फिरते हैं ।। ७ ॥ कोई हाथ हिलाते हैं, कोई पैर हिलाते हैं और कोई कर-कर दांत किरते हैं ॥८॥ कोई वस्त्र निकल जाने के कारण नंगे ही लोटने लगते हैं और किसीकी पगडियां चारो ओर फैली रहती हैं ॥ ६॥ कोई अस्तव्यस्त पड़े रहते हैं, कोई मुर्दा से दिखते हैं और किसीके दांत पसर जाने से, वे भूत से तुरे दिखते हैं ॥ १०॥ कोईवरते हुए उठते हैं, कोई अँधेरे में भटकने लगते हैं और कोई ओंक पर जाकर सो रहते हैं ॥ ११ ॥ कोई मटके उठाते हैं, कोई धरती ही टटोलने लगते हैं और कोई उठ कर मनमानी ओर चल देते हैं ॥ १२॥ कोई प्राणी वर्राते हैं, कोई हुसक हुसक कर रोते हैं और कोई मजे से खिल्ल खिल्ल हँसते हैं ! ॥ १३ ॥ कोई पुकारने लगते हैं; कोई चिल्लाते हैं और कोई चौंक कर अपनी ही जगह पर रह जाते हैं ॥१४॥ कोई क्षण क्षण में खरोंचते हैं, कोई तिर खुजालते हैं और खूब कांखने लगते हैं ॥ १५ ॥ किसीके लार बहती है, कोई पीक छोड़ता है और कोई मजे से लघुशंका कर देते हैं ॥ १६ ॥ कोई अपानवायु छोड़ते हैं, कोई खट्टी डकार डकारते हैं और कोई खंखार कर मनमानी जगह में थूक देते हैं ॥ १७ ॥ कोई हगते हैं, कोई ओंकते हैं, कोई खांसते हैं, कोई छींकते हैं और कोई उसनीदे स्वर से पानी मांगते हैं ॥ १८ ॥ कोई स्वप्न से व्याकुल हैं, कोई अच्छे स्वप्नों से संतुष्ट हैं, और कोई सुषुप्ति के कारण गाढ़ बेहोशी में पड़े हैं ॥ १६ ॥ इधर भोर गया, कोई पढ़ना शुरू करता है और कोई प्रातःस्मरण या हरिकीर्तन का प्रारम्भ करता है ॥ २० ॥ कोई ध्यानमूर्ति का स्मरण करते हैं, कोई एकान्त में जप करते हैं और कोई नाना प्रकार से अपना घोखा हुआ पाठ उधरते ॥२१॥ अपनी अपनी नाना विद्याएं और नाना कलाएं सब सीखते हैं, कोई तानमान से गायनकला का अभ्यास करते हुए गाते हैं ।। २२॥ पिछली निद्रा समाप्त होती है और जागृति प्राप्त होती है । इस लिए लोग अपने अपने व्यवसाय में लगते हैं ॥ २३ ॥ इधर ज्ञाता तत्व (दृश्य) को लांघ जाता है, तुर्या के उस तरफ चला जाता है और आत्म- निवेदन से ब्रह्मरूप हो जाता है ॥२४॥