पृष्ठ:दासबोध.pdf/५३४

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दासबोध । [ दशक १८ दसवाँ समास-श्रवण-विक्षेप । ॥ श्रीराम ॥ किसी कार्य के उद्योग में लगने से बीच में कुछ न कुछ विघ्न आ जाता है। परन्तु यदि समय की सहायता हुई-यदि समय अनुकूल हुआ तो वह कार्य आप ही आप होते जाता है ॥१॥ जव कार्य होने लगता है तव मनुष्य सुखी होता है और दिन पर दिन विचार सूझने लगता है ॥२॥ जब कोई प्राणी अवतीर्ण होता है तब उसे कुछ न कुछ समय अनुकूल होता ही है और परमेश्वर कृपा करके दुख के बाद सुख देता ही ॥३॥ सम्पूर्ण काल यदि अनुकुल ही बना रहे तो सब ही लोग राजा हो जायँ । बात तो यह है कि, कुछ काल अनुकूल रहता है और कुछ नहीं रहता ॥ ४ ॥ इहलोक या परलोक दो में से कोई भी बात साधने के लिये स्वाभाविक और अद्भुत विवेक होना ईश्वर की देनगी है ॥ ५॥ यह बात पृथ्वी पर न कभी देखी गई और न सुनी गई कि, किसीको सुने बिना कुछ मालूम हुआ हो या सिखाये बिना कोई चतुरता प्राप्त हुई हो ॥ ६ ॥ सुनने से सब कुछ मालूम होता है, मालूम होते होते वृत्ति शुद्ध होती है और लार-असार का निश्चय मन में बैठ जाता है ॥ ७ ॥ श्रवण कहते हैं सुनने को, मनन कहते हैं सुनी हुई बात का वार- बार विचार करने को-इन्हीं दोनों उपायों से तीनों लोक का व्यापार चलता है ॥ ८॥ श्रवण में जो अनेक प्रकार के विघ्न आते हैं, उन्हें कहां तक गिनावें? परन्तु सावधान रहने से सब कुछ अनुभव में आ जाता है ॥ ६॥ श्रवण में जो लोग (पहले से ) बैठते हैं वे व्याख्याता के बोलते बोलते एकान हो जाते हैं, परन्तु पीछे से जो नये लोग आते हैं वे एकाग्र नहीं होते ॥ १० ॥ जो मनुष्य बाहर घूम आता है वह नाना प्रकार की वाते सुन आता है । इस लिए वह कुछ न कुछ हलचल किया ही करता है । चुप नहीं बैठता ॥ ११ ॥ मौका देख कर चलनेवाले मनुष्य वहुत कम होते है । अस्तु । अब, श्रवण में जो विघ्न आते हैं वे सुनोः- ॥ १२ ॥ श्रवण में बैठने पर पहले तो ऐंड़ाई आने लगती है और निद्रा के कारण जल्दी जल्दी जप्सुहाई आने लगती है ॥ १३ ॥ कोई सुचित्त हो. कर बैठते हैं, परन्तु उनका मन ही नहीं लगता । वे पीछे सुनी हुई बातों को ही मन में रखे रहते हैं ॥ १४॥ शरीर को तो सुनने के लिए तत्पर .